#धन प्राप्ति के लिए मंत्र
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धन प्राप्ति के लिए शुभ मंत्र:- "ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः" मास: ज्येष्ठ (ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष) तिथि: द्वादशी (शुक्ल पक्ष) वार: शुक्रवार नक्षत्र: आर्द्रा योग: वैधृति करण: बालव
सूर्योदय: 05:30 AM सूर्यास्त: 07:19 PM
व्रत और त्योहार: विवाह पंचमी नील शष्टी व्रत
मुहूर्त: शुभ मुहूर्त: 09:18 AM - 10:50 AM, 04:44 PM - 06:16 PM राहुकाल: 03:01 PM - 04:44 PM यमघंट: 12:05 PM - 01:47 PM गुलिकाकाल: 07:27 AM - 09:10 AM अभिजित मुहूर्त: 12:07 PM - 12:54 PM
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यह जानकारी केवल सामान्य उद्देश्यों के लिए है। पंचांग और शुभ मुहूर्तों की जानकारी के लिए स्थानीय पंडित या ज्योतिषी की सलाह लें।
सुनिये देवी माँ का यह सुन्दर भजन:- youtu.be/Sy4RIja6TVM https://vvlmusic.com/
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अपनी राशि के समय के अनुसार शुद्ध मुहूर्त में करें दिपावली का पूजन हो जाएँगे माला - माल साल भर में!
🌞🌳 🕉दीपावली पूजन के लिये चार विशेष मुहूर्त
👉1- व��श्चिक लग्न- यह लग्न दीपावली के सुबह आती है वृश्चिक लग्न में मंदिर, स्कूल, हॉस्पिटल, कॉलेज आदि में पूजा होती है। राजनीति से जुड़े लोग एवं कलाकार आदि इसी लग्न में पूजा करते हैं।
👉2- कुंभ लग्न- यह दीपावली की दोपहर का लग्न होता है। इस लग्न में प्रायः बीमार लोग अथवा जिन्हें व्यापार में काफी हानि हो रही है, जिनकी शनि की खराब महादशा चल रही हो उन्हें इस लग्न में पूजा करना शुभ रहता है।
👉3- वृषभ लग्न- यह लग्न दीपावली की शाम को प्रायः मिल ही जाता है तथा इस लग्न में गृहस्थ एवं व्यापारियों को पूजा करना सबसे उत्तम माना गया है।
👉4- सिंह लग्न- यह लग्न दीपावली की मध्यरात्रि के आस-पास पड़ता है तथा इस लग्न में तांत्रिक, सन्यासी आदि के लिए पूजा करना शुभ रहता है ।
दिल्ली के अनुसार लग्न की समय अवधि :-
👉वृश्चिक लग्न:- 07:00 से 10 :10 तक 👉कुंभ लग्न:- 13 :57 से 15 : 24 तक 👉वृषभ लग्न:- 18 :24 से 20 :19 तक 👉सिंह लग्न:- 00:59 से 03 :16 तक
🕉🚩महानिशीथ काल:-
महानिशीथ काल में धन लक्ष्मी का आवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य किया जाता है। श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य वैदिक तांत्रिक मंन्त्रों का जपानुष्ठान किया जाता है।
महानिशीथ काल रात्रि में 23:38 से 24:30 मिनट तक रहेगा। इस समयावधि में कर्क लग्न और सिंह लग्न होना शुभस्थ है। इसलिए अशुभ चौघडियों को भुलाकर यदि कोई कार्य प्रदोष काल अथवा निशिथकल में शुरु करके इस महानिशीथ काल मे�� संपन्न हो रहा हो तो भी वह अनुकूल ही माना जाता है। महानिशिथ काल में पूजा समय चर लग्न में कर्क लग्न उसके बाद स्थिर लग्न, सिंह लग्न भी हों, तो विशेष शुभ माना जाता है। महानिशीथ काल में कर्क लग्न और सिंह लग्न होने के कारण यह समय शुभ हो गया है। जो शास्त्रों के अनुसार दीपावली पूजन करना चाहते हो, वह इस समयावधि को पूजा के लिये प्रयोग कर सकते हैं। इसमें किया हुआ तंत्र प्रयोग मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तंभन इत्यादि कर्म तांत्रिकों की ओर से किए जाते हैं। इस समय में किया हुआ कोई भी मंत्र सिद्ध हो जाता है। इस समय में सभी आसुरी शक्तियां जागृत हो जाती हैं। इस समय में घोर, अघोर, डाबर, साबर सभी प्रकार के मंत्रों की सिद्धि हो जाती है। इसी समय उल्लूक तंत्र का प्रयोग साधक लोग करते हैं। पंच प्रकार की पूजा, काली पूजा, तारा, छिन्नमस्ता, बगुलामुखी पूजा इसी समय की जाती है। जो जन शास्त्रों के अनुसार दीपावली पूजन करना चाहते हो, उन्हें इस समयावधि को पूजा के लिये प्रयोग करना चाहिए। वृष एवं सिंह लग्न में कनकधारा एवं ललितासहस्त्रनाम का पाठ विशेष लाभद��यक माना गया है।
🕉🚩दीपदान मुहूर्त : लक्ष्मी पूजा दीपदान के लिए प्रदोष काल (रात्रि का प��चमांश प्रदोष काल कहलाता है) ही विशेषतया प्रशस्त माना जाता है। दीपावली के दिन प्रदोष काल सायं 05:50 से रात्रि 08:27 बजे तक रहेगा ।
🕉🚩राशियों के अनुसार लक्ष्मी पूजन मेष, सिंह और धनु
ये तीनों अग्नि तत्व प्रधान राशि है इन राशि वालों के लिए धन लक्ष्मी की पूजा विशेष लाभकारी होती है, मां लक्ष्मी के उस स्वरूप की स्थापना करें, जिसमें उनके पास अनाज की ढेरी हो। चावल की ढेरी पर लक्ष्मीजी का स्वरूप स्थापित करें उनके सामने घी का दीपक जलाएं, उनको चांदी का सिक्का अर्पित करें। पूजा के उपरान्त उसी चांदी के सिक्के को अपने धन स्थान पर रख दें।
🕉🚩मिथुन, तुला और कुम्भ राशि
इन राशि वालों के लिए गजलक्ष्मी के स्वरूप की आराधना विशेष होती है, कारोबार में धन की प्राप्ति के लिए गज लक्ष्मी की पूजा, लक्ष्मीजी के उस स्वरूप की स्थापना करें, जिसमें दोनों तरफ उनके साथ हाथी हों, लक्ष्मीजी के समक्ष घी के तीन दीपक जलाएं, मां लक्ष्मी को एक कमल या गुलाब का फूल अर्पित करें, पूजा के उपरान्त उसी फूल को अपनी तिजोरी में रख दें।
🕉🚩वृष, कन्या, और मकर राशि :-
इस राशि के लोगों के लिए ऐश्वर्यलक्ष्मी की पूजा विशेष होती है, नौकरी में धन की बढ़ोतरी के लिए ऐश्वर्य लक्ष्मी की पूजा, गणेशजी के साथ लक्ष्मीजी की स्थापना करें, गणेशजी को पीले और लक्ष्मीजी को गुलाबी फूल चढ़ाएं, लक्ष्मीजी को अष्टगंध चरणों में अर्पित करें, नित्य प्रातः स्नान के बाद उसी अष्टगंध का तिलक लगाएं।
🕉🚩कर्क, वृश्चिक और मीन राशि :-
इस राशि के लिए वरलक्ष्मी की पूजा विशेष होती है। धन के नुकसान से बचने के लिए वर जयपुर लक्ष्मी की पूजा में लक्ष्मीजी के उस स्वरूप की स्थापना करें। जिसमें वह खड़ी हों और धन दे रही हों, उनके सामने सिक्के तथा नोट अर्पित करें, पूजन के बाद यही धनराशि अपनी तिजोरी में रखें, इसे खर्च न करें। उपरोक्त विधि-विधान से पूजन करने पर भुवनेश्वर महालक्ष्मी आप पर प्रसन्न होगीं जम्मू तथा घर में समृद्धि व प्रसन्नता आयेगी
🕉🚩भारत में दीपावली पूजन का मुहूर्त (31.10.2024):-
👉व्यावसायिक स्थल में पूजन का समय, कुम्भ लग्न:- 13 :57 से 15 : 24 तक
👉घर में पूजन का समय, वृषभ लग्न:- 18 :24 से 20 :19 तक
👉प्रातः काल में पूजन का समय, वृश्चिक लग्न:- 07:00 से 10 :10 तक
👉साधना और सिद्धि का समय, सिंह लग्न:- 00:59 से 03 :16 तक
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Episode : 60 | कबीर साहेब जी द्वारा तैमूरलंग को 7 पीढ़ी का राज देना | San...
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*🌼बन्दीछोड़ सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी की जय हो🌼*
♦♦♦
23/10/24
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🥀🌺🌼🌸🌺🌼🌸🌺🥀
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1🍀भक्ति से भगवान तक
चार मुक्ति जहाँ चम्पी करती, माया हो रही दासी।
दास गरीब अभय पद परसै, मिले राम अविनाशी।।
सनातन परम धाम में परम शान्ति तथा अत्यधिक सुख है। काल ब्रह्म के लोक चार मुक्ति मानी जाती है, परंतु वे स्थाई नहीं हैं। कुछ समय उपरांत पुण्य समाप्त होते ही फिर 84 लाख प्रकार की योनियों में कष्ट उठाता है। परंतु उस सत्यलोक में चारों मुक्ति वाला सुख सदा बना रहेगा। माया आपकी नौकरानी बनकर रहेगी।
2🍀शास्त्रानुकूल भक्ति से भगवान तक
पूर्ण मोक्ष के लिए शास्त्रानुकूल भक्ति करनी चाहिए जिससे उस भगवान तक जाया जा सकता है।
संत रामपाल जी महाराज वर्तमान में शास्त्रानुकूल भक्ति बता रहे हैं जिससे साधक का मोक्ष हो जाता है।
3🍀सतभक्ति से भगवान तक
सतगुरू मिलैं तो इच्छा मेटैं, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।
यदि तत्वदर्शी संत सतगुरू मिलें तो तत्वज्ञान बताकर काल ब्रह्म के लोक की सर्व वस्तुओं से तथा पदों से इच्छा समाप्त करके शास्त्रविधि अनुसार ��ाधना बताकर परमेश्वर के उस परम पद की प्राप्ति करा देता है जहाँ जाने के पश्चात् फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। हे भक्त! चल तुझे उस लोक में भेज दूँ जो आदि अमर अस्थान है अर्थात गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में वर्णित सनातन परम धाम है जहाँ पर परम शांति है।
4🍀भक्ति से भगवान तक
केवल परम अक्षर ब्रह्म ही अविनाशी राम अर्थात प्रभु है। इस परमेश्वर की भक्ति से ही परमशांति तथा सनातन परम धाम अर्थात पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा जहाँ पर चार मुक्ति का सुख सदा रहेगा।
5🍀 शास्त्रविधि अनुसार भक्ति से भगवान
सूक्ष्मवेद में कहा है किः-
कबीर, माया दासी संत की, उभय दे आशीष।
विलसी और लातों छड़ी, सुमर-सुमर जगदीश।।
सर्व सुख-सुविधाऐं धन से होती हैं। वह धन शास्त्रविधि अनुसार भक्ति करने वाले संत-भक्त की भक्ति का By Product होता है।
सत्य साधना करने वाले को अपने आप धन माया मिलती है। साधक उसको भोगता है, धन का अभाव नहीं रहता।
6🍀 ऐसे मिलेगा भगवान
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी की भक्ति करके माया का भी आनन्द भक्त, संत प्राप्त करते हैं तथा पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त करते हैं।
यह रहस्य तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ने ही बताया है।
7🍀परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) को कैसे प्राप्त करेंगे?
परमेश्वर प्राप्ति के लिए नाम का जाप करना होता है।
सूक्ष्मवेद में लिखा है:-
कबीर, कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार।
योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार।।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
8🍀 ऐसे मिलेगा भगवान
कलयुग केवल नाम आधारा, सुमर-सुमर नर उतरे पारा। (रामायण)
पूर्व के युगों में मानव की आयु लम्बी होती थी। ऋषि व साधक हठयोग करके हजारों वर्षों तक तप साधना करते रहते थे। अब कलयुग में मनुष्य
की औसतन आयु लगभग 75-80 वर्ष रह गई है। इतने कम समय में हठयोग साधना नहीं कर सकोगे। इसलिए अतिशीघ्र पूर्ण गुरू जी से दीक्षा लेकर अपने जीवन का शेष समय संभाल लें। भक्ति करके इसका सदुपयोग कर लो।
-संत रामपाल जी महाराज
9🍀भक्ति से भगवान तक कैसे पहुँचेंगे?
कबीर, नाम लिय तिन सब लिया सकल बेद का भेद।
बिन नाम नरकै पड़ा, पढ़कर चारों वेद।।
यदि कोई व्यक्ति चारों वेदों को पढ़ता रहा और नाम जाप किया नहीं तो वह भक्ति की शक्ति से रहित होकर नरक में गिरेगा और जिसने विधिवत दीक्षा लेकर नाम का जाप किया तो समझ लो उसने सर्व वेदों का रहस्य जान लिया।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज शास्त्र प्रमाणित मंत्र देते हैं जिससे मोक्ष के साथ यहां भी सर्व सुख मिलते हैं।
10🍀 भक्ति से भगवान तक पहुँचने के लिए मध्यस्थ की आवश्यकता पड़ती है, जिसे मार्गदर्शक या गुरू, सतगुरू कहते हैं।
परमात्मा का ��िधान है जो सूक्ष्मवेद में कहा है:-
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोंनो निष्फल है, पूछो वेद पुराण।।
गुरू बिन नाम जाप की माला फिराते हैं या दान देते हैं, वह व्यर्थ है। यह वेदों तथा पुराणों में भी प्रमाण है। यदि दीक्षा लेकर फिर गुरू को छोड़कर उन्हीं मन्त्रों का जाप करता रहे तथा यज्ञ, हवन, दान भी करता रहे, वह भी व्यर्थ है। उसको कोई लाभ नहीं होगा।
कबीर, तांते सतगुरू शरणा लीजै, कपट भाव सब दूर करिजै।
गुरू पूरा हो, झूठे गुरू से कोई लाभ नहीं होता।
वर्तमान में धरती पर पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो शास्त्र प्रमाणित भक्ति और लाभ देते हैं।
11🍀 पूरे गुरू की क्या पहचान है?
सूक्ष्मवेद में गुरू के लक्षण बताए हैं:-
गरीब, सतगुरू के लक्षण कहूँ, मधुरे बैन विनोद।
चार वेद छः शास्त्र, कह अठारह बोध।।
सन्त गरीबदास जी ने गुरू की पहचान बताई है कि जो सच्चा गुरू अर्थात सतगुरू होगा, वह ऐसा ज्ञान बताता है कि उसके वचन आत्मा को आनन्दित कर देते हैं, बहुत मधुर लगते हैं क्योंकि वे सत्य पर आधारित होते हैं। कारण है कि सतगुरू चार वेदों तथा सर्व शास्त्रों का ज्ञान विस्तार से कहता है।
वह पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
12🍀 कैसे होगी भगवान प्राप्ति?
सामवेद मंत्र संख्या 822 के अनुसार, तीन मंत्रों के जाप से परमात्मा की प्राप्ति होती है जिसका संकेत पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में "ॐ, तत्, सत्" के रूप में किया गया है। जिन्हें वर्तमान में केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रदान किया जाता है।
13🍀ऐसे मिलेगा भगवान
कुरआन मजीद, सूरः अश् शूरा-42 आयत नं. 2 में अैन, सीन, काफ, गीता अध्याय 17 श्लोक 23 के ओम्, तत्, सत् वाले ही सांकेतिक मंत्र (कलमा) हैं। इस तीन मंत्र के जाप से सब पाप नाश हो जाते हैं। कर्म का दंड समाप्त हो जाता है और पूर्ण परमात्मा (कादिर अल्लाह) की प्राप्ति होती है।
14🍀ऐसे मिलेगा भगवान
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 और यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 के अनुसार पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी संत की तलाश करनी चाहिए। जिनके द्वारा बताई शास्त्र अनुकूल भक्ति से साधक को ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 49 मंत्र 1 में वर्णित सुख और मोक्ष के साथ-साथ परमात्मा की प्राप्ति होती है।
15🍀कैसे मिलेगा भगवान?
ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 1 मंत्र 5, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मंत्र 3, अथर्ववेद कांड 4 अनुवाक 1 मंत्र 7 के मुताबिक, सनातन परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) जी हैं। जिन्होंने सर्व ब्रह्मांडों की रचना की है। जिनकी प्राप्ति यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 के अनुसार तत्वदर्शी संत द्वारा बताई सतभक्ति से ही संभव है।
16🍀गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा गया है कि उत्तम पुरुष यानि पूर्ण परमात्मा तो कोई और है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उस परमात्मा को प्राप्त करने की विधि क्या है? जानने के लिए देखिए
17🍀ऐसे मिलेगा भगवान
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाने के पश्चात् गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित उस परमेश्वर के परम प�� को भलीभाँति खोजना चाहिए जिसमें गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परम अक्षर ब्रह्म से आदि रचना-सृष्टि उत्पन्न हुई है। अर्थात परम अक्षर ब्रह्म की प्राप्ति तत्वदर्शी संत के द्वारा बताई भक्ति से ही संभव है।
18🍀ऐसे मिलेगा भगवान
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मंत्र 1-2, ऋग्वेद मण्डल 86 मंत्र 26-27 के अनुसार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) जी हैं। जिनकी प्राप्ति पूर्ण संत द्वारा बताई शास्त्र अनुकूल भक्ति करने से ही हो सकती है।
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🍀भक्ति से भगवान तक
चार मुक्ति जहाँ चम्पी करती, माया हो रही दासी।
दास गरीब अभय पद परसै, मिले राम अविनाशी।।
सनातन परम धाम में परम शान्ति तथा अत्यधिक सुख है। काल ब्रह्म के लोक चार मुक्ति मानी जाती है, परंतु वे स्थाई नहीं हैं। कुछ समय उपरांत पुण्य समाप्त होते ही फिर 84 लाख प्रकार की योनियों में कष्ट उठाता है। परंतु उस सत्यलोक में चारों मुक्ति वाला सुख सदा बना रहेगा। माया आपकी नौकरानी बनकर रहेगी।
🍀शास्त्रानुकूल भक्ति से भगवान तक
पूर्ण मोक्ष के लिए शास्त्रानुकूल भक्ति करनी चाहिए जिससे उस भगवान तक जाया जा सकता है।
संत रामपाल जी महाराज वर्तमान में शास्त्रानुकूल भक्ति बता रहे हैं जिससे साधक का मोक्ष हो जाता है।
🍀सतभक्ति से भगवान तक
सतगुरू मिलैं तो इच्छा मेटैं, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।
यदि तत्वदर्शी संत सतगुरू मिलें तो तत्वज्ञान बताकर काल ब्रह्म के लोक की सर्व वस्तुओं से तथा पदों से इच्छा समाप्त करके शास्त्रविधि अनुसार साधना बताकर परमेश्वर के उस परम पद की प्राप्ति करा देता है जहाँ जाने के पश्चात् फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। हे भक्त! चल तुझे उस लोक में भेज दूँ जो आदि अमर अस्थान है अर्थात गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में वर्णित सनातन परम धाम है जहाँ पर परम शांति है।
🍀भक्ति से भगवान तक
केवल परम अक्षर ब्रह्म ही अविनाशी राम अर्थात प्रभु है। इस परमेश्वर की भक्ति से ही परमशांति तथा सनातन परम धाम अर्थात पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा जहाँ पर चार मुक्ति का सुख सदा रहेगा।
🍀 शास्त्रविधि अनुसार भक्ति से भगवान
सूक्ष्मवेद में कहा है किः-
कबीर, माया दासी संत की, उभय दे आशीष।
विलसी और लातों छड़ी, सुमर-सुमर जगदीश।।
सर्व सुख-सुविधाऐं धन से होती हैं। वह धन शास्त्रविधि अनुसार भक्ति करने वाले संत-भक्त की भक्ति का By Product होता है।
सत्य साधना करने वाले को अपने आप धन माया मिलती है। साधक उसको भोगता है, धन का अभाव नहीं रहता।
🍀 ऐसे मिलेगा भगवान
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी की भक्ति करके माया का भी आनन्द भक्त, संत प्राप्त करते हैं तथा पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त करते हैं।
यह रहस्य तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ने ही बताया है।
🍀परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) को कैसे प्राप्त करेंगे?
परमेश्वर प्राप्ति के लिए नाम का जाप करना होता है।
सूक्ष्मवेद में लिखा है:-
कबीर, कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार।
योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार।।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
🍀 ऐसे मिलेगा भगवान
कलयुग केवल नाम आधारा, सुमर-सुमर नर उतरे पारा। (रामायण)
पूर्व के युगों में मानव की आयु लम्बी होती थी। ऋषि व साधक हठयोग करके हजारों वर्षों तक तप साधना करते रहते थे। अब कलयुग में मनुष्य
की औसतन आयु लगभग 75-80 वर्ष रह गई है। इतने कम समय में हठयोग साधना नहीं कर सकोगे। इसलिए अतिशीघ्र पूर्ण गुरू जी से दीक्षा लेकर अपने जीवन का शेष समय संभाल लें। भक्ति करके इसका सदुपयोग कर लो।
-संत रामपाल जी महाराज
🍀भक्ति से भगवान तक कैसे पहुँचेंगे?
कबीर, नाम लिय तिन सब लिया सकल बेद का भेद।
बिन नाम नरकै पड़ा, पढ़कर चारों वेद।।
यदि कोई व्यक्ति चारों वेदों को पढ़ता रहा और नाम जाप किया नहीं तो वह भक्ति की शक्ति से रहित होकर नरक में गिरेगा और जिसने विधिवत दीक्षा लेकर नाम का जाप किया तो समझ लो उसने सर्व वेदों का रहस्य जान लिया।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज शास्त्र प्रमाणित मंत्र देते हैं जिससे मोक्ष के साथ यहां भी सर्व सुख मिलते हैं।
🍀 भक्ति से भगवान तक पहुँचने के लिए मध्यस्थ की आवश्यकता पड़ती है, जिसे मार्गदर्शक या गुरू, सतगुरू कहते हैं।
परमात्मा का विधान है जो सूक्ष्मवेद में कहा है:-
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोंनो निष्फल है, पूछो वेद पुराण।।
गुरू बिन नाम जाप की माला फिराते हैं या दान देते हैं, वह व्यर्थ है। यह वेदों तथा पुराणों में भी प्रमाण है। यदि दीक्षा लेकर फिर गुरू को छोड़कर उन्हीं मन्त्रों का जाप करता रहे तथा यज्ञ, हवन, दान भी करता रहे, वह भी व्यर्थ है। उसको कोई लाभ नहीं होगा।
कबीर, तांते सतगुरू शरणा लीजै, कपट भाव सब दूर करिजै।
गुरू पूरा हो, झूठे गुरू से कोई लाभ नहीं होता।
वर्तमान में धरती पर पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो शास्त्र प्रमाणित भक्ति और लाभ देते हैं।
🍀 पूरे गुरू की क्या पहचान है?
सूक्ष्मवेद में गुरू के लक्षण बताए हैं:-
गरीब, सतगुरू के लक्षण कहूँ, मधुरे बैन विनोद।
चार वेद छः शास्त्र, कह अठारह बोध।।
सन्त गरीबदास जी ने गुरू की पहचान बताई है कि जो सच्चा गुरू अर्थात सतगुरू होगा, वह ऐसा ज्ञान बताता है कि उसके वचन आत्मा को आनन्दित कर देते हैं, बहुत मधुर लगते हैं क्योंकि वे सत्य पर आधारित होते हैं। कारण है कि सतगुरू चार वेदों तथा सर्व शास्त्रों का ज्ञान विस्तार से कहता है।
वह पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
🍀 कैसे होगी भगवान प्राप्ति?
सामवेद मंत्र संख्या 822 के अनुसार, तीन मंत्रों के जाप से परमात्मा की प्राप्ति होती है जिसका संकेत पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में "ॐ, तत्, सत्" के रूप में किया गया है। जिन्हें वर्तमान में केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रदान किया जाता है।
🍀ऐसे मिलेगा भगवान
कुरआन मजीद, सूरः अश् शूरा-42 आयत नं. 2 में अैन, सीन, काफ, गीता अध्याय 17 श्लोक 23 के ओम्, तत्, सत् वाले ही सांकेतिक मंत्र (कलमा) हैं। इस तीन मंत्र के जाप से सब पाप नाश हो जाते हैं। कर्म का दंड समाप्त हो जाता है और पूर्ण परमात्मा (कादिर अल्लाह) की प्राप्ति होती है।
🍀ऐसे मिलेगा भग��ान
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 और यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 के अनुसार पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी संत की तलाश करनी चाहिए। जिनके द्वारा बताई शास्त्र अनुकूल भक्ति से साधक को ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 49 मंत्र 1 में वर्णित सुख और मोक्ष के साथ-साथ परमात्मा की प्राप्ति होती है।
🍀कैसे मिलेगा भगवान?
ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 1 मंत्र 5, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मंत्र 3, अथर्ववेद कांड 4 अनुवाक 1 मंत्र 7 के मुताबिक, सनातन परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) जी हैं। जिन्होंने सर्व ब्रह्मांडों की रचना की है। जिनकी प्राप्ति यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 के अनुसार तत्वदर्शी संत द्वारा बताई सतभक्ति से ही संभव है।
🍀गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा गया है कि उत्तम पुरुष यानि पूर्ण परमात्मा तो कोई और है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उस परमात्मा को प्राप्त करने की विधि क्या है? जानने के लिए देखिए
🍀ऐसे मिलेगा भगवान
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाने के पश्चात् गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित उस परमेश्वर के परम पद को भलीभाँति खोजना चाहिए जिसमें गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परम अक्षर ब्रह्म से आदि रचना-सृष्टि उत्पन्न हुई है। अर्थात परम अक्षर ब्रह्म की प्राप्ति तत्वदर्शी संत के द्वारा बताई भक्ति से ही संभव है।
🍀ऐसे मिलेगा भगवान
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मंत्र 1-2, ऋग्वेद मण्डल 86 मंत्र 26-27 के अनुसार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) जी हैं। जिनकी प्राप्ति पूर्ण संत द्वारा बताई शास्त्र अनुकूल भक्ति करने से ही हो सकती है।
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*🌲बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय🌲*
🎈🎈
22/10/24
*💫Facebook सेवा💫*
🌱 *मालिक की दया से "भक्ति से भगवान तक" टॉपिक से सम्बंधित Facebook पर सेवा करेंगे जी।*
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🍀भक्ति से भगवान तक
चार मुक्ति जहाँ चम्पी करती, माया हो रही दासी।
दास गरीब अभय पद परसै, मिले राम अविनाशी।।
सनातन परम धाम में परम शान्ति तथा अत्यधिक सुख है। काल ब्रह्म के लोक चार मुक्ति मानी जाती है, परंतु वे स्थाई नहीं हैं। कुछ समय उपरांत पुण्य समाप्त होते ही फिर 84 लाख प्रकार की योनियों में कष्ट उठाता है। परंतु उस सत्यलोक में चारों मुक्ति वाला सुख सदा बना रहेगा। माया आपकी नौकरानी बनकर रहेगी।
🍀शास्त्रानुकूल भक्ति से भगवान तक
पूर्ण मोक्ष के लिए शास्त्रानुकूल भक्ति करनी चाहिए जिससे उस भगवान तक जाया जा सकता है।
संत रामपाल जी महाराज वर्तमान में शास्त्रानुकूल भक्ति बता रहे हैं जिससे साधक का मोक्ष हो जाता है।
🍀सतभक्ति से भगवान तक
सतगुरू मिलैं तो इच्छा मेटैं, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।
यदि तत्वदर्शी संत सतगुरू मिलें तो तत्वज्ञान बताकर काल ब्रह्म के लोक की सर्व वस्तुओं से तथा पदों से इच्छा समाप्त करके शास्त्रविधि अनुसार साधना बताक�� परमेश्वर के उस परम पद की प्राप्ति करा देता है जहाँ जाने के पश्चात् फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। हे भक्त! चल तुझे उस लोक में भेज दूँ जो आदि अमर अस्थान है अर्थात गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में वर्णित सनातन परम धाम है जहाँ पर परम शांति है।
🍀भक्ति से भगवान तक
केवल परम अक्षर ब्रह्म ही अविनाशी राम अर्थात प्रभु है। इस परमेश्वर की भक्ति से ही परमशांति तथा सनातन परम धाम अर्थात पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा जहाँ पर चार मुक्ति का सुख सदा रहेगा।
🍀 शास्त्रविधि अनुसार भक्ति से भगवान
सूक्ष्मवेद में कहा है किः-
कबीर, माया दासी संत की, उभय दे आशीष।
विलसी और लातों छड़ी, सुमर-सुमर जगदीश।।
सर्व सुख-सुविधाऐं धन से होती हैं। वह धन शास्त्रविधि अनुसार भक्ति करने वाले संत-भक्त की भक्ति का By Product होता है।
सत्य साधना करने वाले को अपने आप धन माया मिलती है। साधक उसको भोगता है, धन का अभाव नहीं रहता।
🍀 ऐसे मिलेगा भगवान
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी की भक्ति करके माया का भी आनन्द भक्त, संत प्राप्त करते हैं तथा पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त करते हैं।
यह रहस्य तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ने ही बताया है।
🍀परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) को कैसे प्राप्त करेंगे?
परमेश्वर प्राप्ति के लिए नाम का जाप करना होता है।
सूक्ष्मवेद में लिखा है:-
कबीर, कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार।
योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार।।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
🍀 ऐसे मिलेगा भगवान
कलयुग केवल नाम आधारा, सुमर-सुमर नर उतरे पारा। (रामायण)
पूर्व के युगों में मानव की आयु लम्बी होती थी। ऋषि व साधक हठयोग करके हजारों वर्षों तक तप साधना करते रहते थे। अब कलयुग में मनुष्य
की औसतन आयु लगभग 75-80 वर्ष रह गई है। इतने कम समय में हठयोग साधना नहीं कर सकोगे। इसलिए अतिशीघ्र पूर्ण गुरू जी से दीक्षा लेकर अपने जीवन का शेष समय संभाल लें। भक्ति करके इसका सदुपयोग कर लो।
-संत रामपाल जी महाराज
🍀भक्ति से भगवान तक कैसे पहुँचेंगे?
कबीर, नाम लिय तिन सब लिया सकल बेद का भेद।
बिन नाम नरकै पड़ा, पढ़कर चारों वेद।।
यदि कोई व्यक्ति चारों वेदों को पढ़ता रहा और नाम जाप किया नहीं तो वह भक्ति की शक्ति से रहित होकर नरक में गिरेगा और जिसने विधिवत दीक्षा लेकर नाम का जाप किया तो समझ लो उसने सर्व वेदों का रहस्य जान लिया।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज शास्त्र प्रमाणित मंत्र देते हैं जिससे मोक्ष के साथ यहां भी सर्व सुख मिलते हैं।
🍀 भक्ति से भगवान तक पहुँचने के लिए मध्यस्थ की आवश्यकता पड़ती है, जिसे मार्गदर्शक या गुरू, सतगुरू कहते हैं।
परमात्मा का विधान है जो सूक्ष्मवेद में कहा है:-
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोंनो निष्फल है, पूछो वेद पुराण।।
गुरू बिन नाम जाप की माला फिराते हैं या दान देते हैं, वह व्यर्थ है। यह वेदों तथा पुराणों में भी प्रमाण है। यदि दीक्षा लेकर फिर गुरू को छोड़कर उन्हीं मन्त्रों का जाप करता रहे तथा यज्ञ, हवन, दान भी करता रहे, वह भी व्यर्थ है। उसको कोई लाभ नहीं होगा।
कबीर, तांते सतगुरू शरणा लीजै, कपट भाव सब दूर करिजै।
गुरू पूरा हो, झूठे गुरू से कोई लाभ नहीं होता।
वर्तमान में धरती पर पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो शास्त्र प्रमाणित भक्ति और लाभ देते हैं।
🍀 पूरे गुरू की क्या पहचान है?
सूक्ष्मवेद में गुरू के लक्षण बताए हैं:-
गरीब, सतगुरू के लक्षण कहूँ, मधुरे बैन विनोद।
चार वेद छः शास्त्र, कह अठारह बोध।।
सन्त गरीबदास जी ने गुरू की पहचान बताई है कि जो सच्चा गुरू अर्थात सतगुरू होगा, वह ऐसा ज्ञान बताता है कि उसके वचन आत्मा को आनन्दित कर देते हैं, बहुत मधुर लगते हैं क्योंकि वे सत्य पर आधारित होते हैं। कारण है कि सतगुरू चार वेदों तथा सर्व शास्त्रों का ज्ञान विस्तार से कहता है।
वह पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
🍀 कैसे होगी भगवान प्राप्ति?
सामवेद मंत्र संख्या 822 के अनुसार, तीन मंत्रों के जाप से परमात्मा की प्राप्ति होती है जिसका संकेत पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में "ॐ, तत्, सत्" के रूप में किया गया है। जिन्हें वर्तमान में केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रदान किया जाता है।
🍀ऐसे मिलेगा भगवान
कुरआन मजीद, सूरः अश् शूरा-42 आयत नं. 2 में अैन, सीन, काफ, गीता अध्याय 17 श्लोक 23 के ओम्, तत्, सत् वाले ही सांकेतिक मंत्र (कलमा) हैं। इस तीन मंत्र के जाप से सब पाप नाश हो जाते हैं। कर्म का दंड समाप्त हो जाता है और पूर्ण परमात्मा (कादिर अल्लाह) की प्राप्ति होती है।
🍀ऐसे मिलेगा भगवान
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 और यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 के अनुसार पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी संत की तलाश करनी चाहिए। जिनके द्वारा बताई शास्त्र अनुकूल भक्ति से साधक को ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 49 मंत्र 1 में वर्णित सुख और मोक्ष के साथ-साथ परमात्मा की प्राप्ति होती है।
🍀कैसे मिलेगा भगवान?
ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 1 मंत्र 5, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मंत्र 3, अथर्ववेद कांड 4 अनुवाक 1 मंत्र 7 के मुताबिक, सनातन परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) जी हैं। जिन्होंने सर्व ब्रह्मांडों की रचना की है। जिनकी प्राप्ति यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 के अनुसार तत्वदर्शी संत द्वारा बताई सतभक्ति से ही संभव है।
🍀गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा गया है कि उत्तम पुरुष यानि पूर्ण परमात्मा तो कोई और है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उस परमात्मा को प्राप्त करने की विधि क्या है? जानने के लिए देखिए
🍀ऐसे मिलेगा भगवान
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाने के पश्चात् गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित उस परमेश्वर के परम पद को भलीभाँति खोजना चाहिए जिसमें गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परम अक्षर ब्रह्म से आदि रचना-सृष्टि उत्पन्न हुई है। अर्थात परम अक्षर ब्रह्म की प्राप्ति तत्वदर्शी संत के द्वारा बताई भक्ति से ही संभव है।
🍀ऐसे मिलेगा भगवान
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मंत्र 1-2, ऋग्वेद मण्डल 86 मंत्र 26-27 के अनुसार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) जी हैं। जिनकी प्राप्ति पूर्ण संत द्वारा बताई शास्त्र अनुकूल भक्ति करने से ही हो सकती है।
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कर्म और मोक्ष की यात्रा
शनि देव, राहु और केतु: जीवन में उनके कर्म संबंध और आत्मज्ञान की यात्रा
वेदिक ज्योतिष में, शनि देव, राहु और केतु का मानव जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव है।
ये तीनों ग्रह हमारे कर्मों को प्रभावित करते हैं और हमें आत्मज्ञान की ओर ले जाने का कार्य करते हैं।
शनि देव :- कर्म के न्यायाधीश
शनि देव को न्याय का प्रतीक माना जाता है। वे हमारे पिछले कर्मों के आधार पर हमें सुख और दुख प्रदान करते हैं।
शनि का प्रभाव हमें धैर्य, अनुशासन और मेहनत की सीख देता है। उनका उद्देश्य हमारे कर्मों का हिसाब लेना और हमें सच्चाई के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करना है।
राहु :- माया का प्रतीक
राहु, भ्रम और इच्छाओं का प्रतीक है। राहु हमें भौतिक सुख-सुविधाओं में उलझा देता है और हमें जीवन की माया में फंसा देता है।
हालांकि राहु हमें धन, शक्ति और सफलता दिला सकता है, अंततः वह हमें आंतरिक संतोष से वंचित करता है। राहु का कर्मिक उद्देश्य है हमें माया से गुजरने और आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करना।
केतु :- आत्मज्ञान का मार्गदर्शक
केतु, राहु का विपरीत ध्रुव है। यह त्याग, मोक्ष और आध्यात्मिकता का प्रतीक है।
जहां राहु हमें भौतिकता में फंसाता है, वहीं केतु हमें आंतरिक शांति और आध्यात्मिक प्रगति की ओर ले जाता है। केतु का प्रभाव हमें अहंकार से मुक्त करके हमारे वास्तविक आत्म को पहचानने में मदद करता है।
कर्म और मोक्ष की यात्रा
शनि, राहु और केतु मिलकर हमारे कर्म और मोक्ष की यात्रा को संतुलित करते हैं। शनि हमें हमारे कर्मों का सामना कराते हैं, राहु हमें भौतिक इच्छाओं में उलझाते हैं, और केतु हमें उनसे मुक्त कराते हैं।
इन तीनों ग्रहों का अंतिम उद्देश्य हमें मोक्ष यानी आत्मज्ञान की प्राप्ति की ओर ले जाना है।इस ग्रहों के सामंजस्य से हमें अपने जीवन के उद्देश्य और मोक्ष की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
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अष्टलक्ष्मी मंत्र जाप से होगी धन वर्षा
अष्टलक्ष्मी मंत्र: देवी लक्ष्मी के आठ स्वरूपों का महत्त्व
हिंदू धर्म में देवी लक्ष्मी को समृद्धि, धन, सुख, और ऐश्वर्य की देवी माना जाता है। अष्टलक्ष्मी उन आठ स्वरूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो विभिन्न प्रकार की समृद्धि और ऐश्वर्य प्रदान करती हैं। अष्टलक्ष्मी मंत्र का जप न केवल आर्थिक समृद्धि के लिए, बल्कि मानसिक शांति और समृद्धि के लिए भी अत्यंत प्रभावी है।
अष्टलक्ष्मी के स्वरूप:- अष्टलक्ष्मी का अर्थ है "आठ देवी लक्ष्मी,"
जो निम्नलिखित हैं: 1. धन लक्ष्मी: धन और ऐश्वर्य की देवी।
2. ध्यान लक्ष्मी: ध्यान और समर्पण की देवी।
3. वीर लक्ष्मी: साहस और बल की देवी।
4. सिद्धि लक्ष्मी: ज्ञान और सफलता की देवी।
5. श्री लक्ष्मी: सामर्थ्य और यश की देवी।
6. राज लक्ष्मी: शासन और सत्ता की देवी।
7. जल लक्ष्मी: जल से संबंधित समृद्धि की देवी।
8. संपत्ति लक्ष्मी: भौतिक संपत्ति की देवी। इन देवियों की उपासना करने से व्यक्ति को जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है।
*अष्टलक्ष्मी मंत्र* अष्टलक्ष्मी मंत्र का उच्चारण करने से व्यक्ति को सभी प्रकार की समृद्धि, धन, और मानसिक शांति मिलती है। इस मंत्र का सही उच्चारण और विधि का पालन करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
यहाँ पर अष्टलक्ष्मी मंत्र प्रस्तुत है: **ॐ ह्लीं श्रीं अष्टलक्ष्म्यै नमः।**
इस मंत्र का अर्थ है कि हम अष्टलक्ष्मी को साक्षात् अपने जीवन में आमंत्रित करते हैं, ताकि वे हमें समृद्धि और वैभव से भर दें।
मंत्र जाप की विधि:-
1. **स्थान का चयन**: पूजा के लिए एक पवित्र स्थान का चयन करें।
2. **स्वच्छता**: स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें।
3. **पूजा सामग्री**: चावल, फूल, दीपक, अगरबत्ती, और फल इत्यादि इकट्ठा करें।
4. **मंडल बनाना**: पूजा स्थान पर चावल से मंडल बनाएं और अष्टलक्ष्मी की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।
5. **मंत्र का जाप**: ध्यानपूर्वक और श्रद्धा के साथ मंत्र का जाप करें। मंत्र का महत्व :- अष्टलक्ष्मी मंत्र का महत्व सिर्फ धन और समृद्धि में नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति के मन को भी शांति और स्थिरता प्रदान करता है। इसका नियमित जाप करने से व्यक्ति में धैर्य, साहस, और सकारात्मक सोच का विकास होता है।
1. **धन की वृद्धि**: यह मंत्र धन की कमी को दूर करता है और आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाता है।
2. **सकारात्मकता**: मंत्र का जाप घर में स��ारात्मकता का संचार करता है।
3. **��फलता की प्राप्ति**: जीवन में आने वाली बाधाओं को पार करने में मदद करता है। 4. **आध्यात्मिक विकास**: यह व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।
अष्टलक्ष्मी की पूजा का महत्व: अष्टलक्ष्मी की पूजा का महत्व विशेष रूप से त्योहारों के दौरान बढ़ जाता है। विशेषकर दीवाली के समय, जब लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, तब अष्टलक्ष्मी मंत्र का जाप करके अपने घर में लक्ष्मी का वास सुनिश्चित किया जा सकता है।
पूजा के समय की विशेषताएँ: - **शुभ मुहूर्त**: पूजा का समय हमेशा शुभ मुहूर्त में करना चाहिए। -
**विशेष सामग्री**: पूजा में तुलसी, चावल, और फल का विशेष महत्व है। -
**दीप जलाना**: पूजा के समय दीप जलाना अति महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अंधकार को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
अष्टलक्ष्मी के लाभ:
1. **धन लाभ**: इस मंत्र का जप करने से धन की प्राप्यता में वृद्धि होती है।
2. **सुख-शांति**: मानसिक तनाव कम होता है और व्यक्ति में स्थिरता आती है।
3. **समाज में प्रतिष्ठा**: व्यक्ति को समाज में प्रतिष्ठा और मान-सम्मान प्राप्त होता है।
4. **व्यापार में लाभ**: व्यापारी वर्ग के लिए यह मंत्र अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होता है।
निष्कर्ष: अष्टलक्ष्मी मंत्र का जाप एक आध्यात्मिक साधन है, जो व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाने में सहायक होता है। इस मंत्र का नियमित उच्चारण करने से न केवल आर्थिक लाभ होता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास भी होता है। इस मंत्र के माध्यम से आप न केवल देवी अष्टलक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं, बल्कि अपने जीवन को एक नई दिशा भी दे सकते हैं।
उपसंहार: अंत में, यह कहना उचित होगा कि अष्टलक्ष्मी मंत्र एक दिव्य साधन है, जो सभी प्रकार की समृद्धि, धन, और मानसिक शांति प्रदान करता है। इस मंत्र का जाप करते समय मन में श्रद्धा और विश्वास होना आवश्यक है, जिससे देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके।
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विजया एकादशी क्या है पारस जी से जाने?
हर महीने में दो बार एकादशी व्रत किया जाता है और इस तरह एक साल में 24 एकादशी व्रत किए जाते हैं। महंत श्र�� पारस भाई जी ने कहा कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आपको किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त हो तो इसके लिए विजया एकादशी का व्रत रखें। इस व्रत को रखने से और भगवान विष्णु की पूजा करने से आपको जीवन में अवश्य सफलता मिलती है। इसी कड़ी में आइये जानते हैं कब है विजया एकादशी का व्रत और क्या है इस व्रत का महत्व ?
कब है विजया एकादशी 2024 ?
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी विजया एकादशी के नाम से जानी जाती है। उदयातिथि के आधार पर विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च बुधवार को है। क्योंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 6 मार्च को होगा इसलिए यह व्रत इसी दिन किया जायेगा। यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भी किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्री राम ने रावण से युद्ध करने से पहले विजया एकादशी का व्रत रखा था, जिसके प्रभाव से उन्होंने रावण का वध किया था इसलिए इस दिन व्रत रखना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
विजया एकादशी व्रत की पूजा विधि
विजया एकादशी के दिन सबसे पहले सवेरे उठकर स्नान आदि करें और फिर सच्चे मन से भगवान विष्णु का नाम लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। फिर भगवान को अक्षत, फल, पुष्प, चंदन, मिठाई, रोली, मोली आदि अर्पित करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल जरूर अर्पित करें क्योंकि भगवान विष्णु को तुलसी अत्यधिक प्रिय है। श्रद्धा-भाव से पूजा कर अंत में भगवान विष्णु की आरती करने के बाद सबको प्रसाद बांटें।
इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना भी शुभ होता है क्योंकि इस पाठ को करने से लक्ष्मी जी आपके घर में वास करती हैं। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के शुभ दिन किसी गोशाला में गायों के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन का दान करें। विजया एकादशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। गरीबों व जरूरतमंदों को अन्न , वस्त्र, दक्षिणा आदि दान करें।
विजया एकादशी पारण
विजया एकादशी व्रत के दूसरे दिन पारण किया जाता है। एकादशी व्रत में दूसरे दिन विधि-विधान से व्रत को पूर्ण किया जाता है। विजया एकादशी व्रत का पारण 7 मार्च, गुरुवार को किया जाएगा। महंत श्री पारस भाई जी ने कहा कि इस व्रत का पारण करने से पहले आप ब्राह्मणों को भोजन अवश्य करायें और साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार जरूरतमंद को दान करें और इसके बाद ही स्वयं भोजन करें।
विजया एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। साल में जो 24 एकादशी आती हैं, हर एकादशी का अपना अलग महत्व है। विजया एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति की मुश्किलें दूर होती हैं और हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। महंत श्री पारस भाई जी का कहना है कि भगवान विष्णु के आशीर्वाद से पाप मिटते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। विजया एकादशी जिसके नाम से ही पता चलता है कि इस एकादशी के प्रभाव से आपको विजय की प्राप्ति होती है। यानि विजय प्राप्ति के लिए इस दिन श्रीहरि की पूजा करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके अलावा यह भी मान्यता है कि जो मनुष्य विजया एकादशी का व्रत रखता है उस मनुष्य के पितृ स्वर्ग लोक में जाते हैं।
पूजा के समय इस मंत्र का जाप करें- कृं कृष्णाय नम:, ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नम:। महंत श्री पारस भाई जी ने इस व्रत के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है। विजया एकादशी का व्रत भी बाकी एकादशियों की तरह बहुत ही कल्याणकारी है।
महंत श्री पारस भाई जी आगे कहते हैं कि यदि आप शत्रुओं से घिरे हो और कैसी भी विकट परिस्थिति क्यों न हो, तब विजया एकादशी के व्रत से आपकी जीत निश्चित है।
इस दिन ये उपाय होते हैं बहुत ख़ास
तुलसी की पूजा विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा को बहुत ही अधिक महत्व दिया जाता है। इस तुलसी के पौधे को जल अर्पित कर दीपक जलाएं। इसके अलावा तुलसी का प्रसाद भी ग्रहण करें। ऐसा करने से घर से दुःख दूर होते हैं और घर में खुशालीआती है ।
शंख की पूजा
विजया एकादशी के दिन तुलसी पूजा की तरह शंख पूजा का भी अत्यधिक महत्व है। इस दिन शंख को तिलक लगाने के बाद शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक कर शंख बजाएं। शंख से अभिषेक कर बजाना भी फलदायी माना जाता है। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पीला चंदन प्रयोग करें
महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि विजया एकादशी के दिन पीले चंदन का अत्यंत महत्व होता है। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु को और स्वयं भी पीले चंदन का टीका अवश्य लगाएं। पीले चंदन का टीका लगाने से आपको कभी असफलता नहीं मिलेगी और आपकी सदैव जीत होगी।
ॐ श्री विष्णवे नम: “पारस परिवार” की ओर से विजया एकादशी 2024 की हार्दिक शुभकामनाएं !!!
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart74 के आगे पढिए.....)
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart75
"पवित्र वेदों में कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर का प्रमाण"
(पवित्र वेदों में प्रवेश से पहले) part -E
* विवेचन : ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18 पर विवेचन करते हैं। इसके अनुवाद में भी बहुत-सी गलतियाँ है। हम संस्कृत भी समझ सकते हैं। विवेचन करता हूँ तथा यथा��्थ अनुवाद व भावार्थ स्पष्ट करता हूँ। मन्त्र 17 में कहा कि ऋषि या सन्त रूप में प्रकट होकर परमात्मा अमृतवाणी अपने मुख कमल से बोलता है और उस ज्ञान को समझकर अनेकों अनुयाईयों का समूह बन जाता है। (य) जो वाणी परमात्मा तत्वज्ञान की सुनाता है। वे (ऋषिकृत्) ऋषि रूप में प्रकट परमात्मा कृत (सहंस्रणीथः) हजारों वाणियाँ अर्थात् कबीर वाणियाँ (ऋषिमना) ऋषि स्वभाव वाले भक्तों के लिए (स्वर्षाः) आनन्ददायक होती हैं। (कविनाम पदवीः) कवित्व से दोहों, चौपाईयों में वाणी बोलने के कारण वह परमात्मा कवियों में से एक प्रसिद्ध कवि की पदवी भी प्राप्त करता है। वह (सोम) अमर परमात्मा (सिषासन) सर्व की पालन की इच्छा करता हुआ प्रथम स्थिति में (महिषः) बड़ी पृथ्वी अर्थात् ऊपर के लोकों में (तृतीयम् धाम) तीसरे धाम अर्थात् सत्यलोक के तीसरे पृष्ठ पर (अनुराजति) तेजोमय शरीर युक्त (स्तुप) गुम्बज में (विराजम्) विराजमान है, वहाँ बैठा है। यही प्रमाण ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मन्त्र 3 में है कि परमात्मा सर्व लोकों के ऊपर के लोक में विराजमान है, (तिष्ठन्ति) बैठा है। * विवेचन ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 19 का भी आर्यसमाज के
विद्वानों ने अनुवाद किया है। इसमें भी बहुत सारी गलतियाँ हैं। पुस्तक विस्तार के कारण केवल अपने मतलब की जानकारी प्राप्त करते हैं।
इस मन्त्र में चौथे धाम का वर्णन है। आप जी सृष्टि रचना में पढ़ेंगे, उससे पूर्ण जानकारी होगी। पढ़ें इसी पुस्तक के पृष्ठ 359 पर।
परमात्मा ने ऊपर के चार लोक अजर-अमर रचे हैं। 1. अनामी लोक जो सबसे ऊपर है 2. अगम लोक 3. अलख लोक 4. सत्य लोक। हम पृथ्वी लोक पर हैं, यहाँ से ऊपर के लोकों की गिनती करेंगे तो 1.
सत्यलोक 2. अलख लोक 3. अगम लोक तथा चौथा अनामी लोक उस चौथे धाम में बैठकर परमात्मा ने सर्व ब्रह्माण्डों व लोकों की रचना की। शेष रचना सत्यलोक में बैठकर की थी। आर्यसमाज के अनुवादकों ने तुरिया परमात्मा अर्थात् चौथे परमात्मा का वर्णन किया है। यह चौथा धाम है। उसमें मूल पाठ मन्त्र 19 का भावार्थ है कि तत्वदर्शी सन्त चौथे धाम तथा चौथे परमात्मा का (विवक्ति) भिन्न-भिन्न वर्णन करता है। पाठकजन कृपया पढ़ें सृष्टि रचना इसी पुस्तक के पृष्ठ 359 पर जिससे आप जी को ज्ञान होगा कि लेखक (संत रामपाल दास) ही वह तत्वदर्शी संत है जो तत्वज्ञान से परिचित है। * विवेचन : ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 20 का यथार्थ जानते हैं :-
इस मन्त्र का अनुवाद महर्षि दयानन्द के चेलों द्वारा किया गया है। इनका दृष्टिकोण यह रहा है कि परमात्मा निराकार है क्योंकि महर्षि दयानन्द जी ने यह बात दृढ़ की है कि परमात्मा निराकार है। इसलिए अनुवादक ने सीधे
��न्त्र का अनुवाद घुमा-फिराकर किया है।
जैसे मंत्र 20 के मूल पाठ में ��िखा है :-
मर्य न शुभ्रः तन्वा मृजानः अत्यः न सृत्वा सनये धनानाम्। वृर्षेव यूथा परि कोशम अर्षन् कनिक्रदत् चम्वोः आविवेश ।।
अनुवाद :- (मर्यः) मनुष्य (न) जैसे सुन्दर वस्त्र धारण करता है, ऐसे परमात्मा (शुभ्रः तन्व) सुन्दर शरीर (मृजानः) धारण करके (अत्यः) अत्यन्त गति से (सृत्वा) चलता हुआ (धनानाम्) भक्ति धन के धनियों अर्थात् पुण्यात्माओं को (सनये) प्राप्ति के लिए आता है (यूथा वृषेव) जैसे एक समुदाय को उसका सेनापति प्राप्त होता है। ऐसे वह परमात्मा संत व ऋषि रूप में प्रकट होता है तो उसके बहुत सँख्या में अनुयाई बन जाते हैं और परमात्मा उनका गुरू रूप में मुखिया होता है। वह परमात्मा (परि कोशम्) प्रथम ब्रह्माण्ड में (अर्षन्) प्राप्त होकर अर्थात् आकर (कनिक्रदत्) ऊँचे स्वर में सत्यज्ञान उच्चारण करता हुआ (चम्वौ) पृथ्वी खण्ड में (अविवेश) प्रविष्ट होता है।
भावार्थ :- जैसे पूर्व में वेद मन्त्रों में कहा है कि परमात्मा ऊपर के लोक में रहता है, वहाँ से गति करके पृथ्वी पर आता है, अपने रूप को अर्थात् शरीर के तेज को सरल करके आता है। इस ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 20 में उसी की पुष्टि की है। कहा है कि परमात्मा ऐसे अन्य शरीर धारण करके पृथ्वी पर आता है। जैसे मनुष्य वस्त्र धारण करता है और (धनानाम्) दृढ़ भक्तों (अच्छी पुण्यात्माओं) को प्राप्त होता है, उनको वाणी उच्चारण करके तत्वज्ञान सुनाता है।
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 95 मन्त्र 2 का अनुवाद महर्षि दयानन्द के चेलों ने किया है जो बहुत ठीक किया है।
इसका भावार्थ है कि पूर्वोक्त परमात्मा अर्थात् जिस परमात्मा के विषय में पहले वाले मन्त्रों में ऊपर कहा गया है, वह (सृजानः) अपना शरीर धारण करके (ऋतस्य पथ्यां) सत्यभक्ति का मार्ग अर्थात् यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान अपनी अमृतमयी वाक् अर्थात् वाणी द्वारा मुक्ति मार्ग की प्रेरणा करता है। वह मन्त्र ऐसा है जैसे (अरितेव नावम्) नाविक नौका में बैठाकर पार कर देता है, ऐसे ही परमात्मा सत्यभक्ति मार्ग रूपी नौका के द्वारा साधक को संसार रूपी दरिया के पार करता है। वह (देवानाम् देवः) सब देवों का देव अर्थात् सब प्रभुओं का प्रभु परमेश्वर (बर्हिषि प्रवाचे) वाणी रूपी ज्ञान यज्ञ के लिए (गुह्यानि) गुप्त (नामा आविष्कृणोति) नामों का अविष्कार करता है अर्थात् जैसे गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में "ॐ तत् सत्" में तत् तथा सत् ये गुप्त मन्त्र हैं जो उसी परमेश्वर ने मुझे (संत रामपाल दास) को बताऐ हैं। उनसे ही पूर्ण मोक्ष सम्भव है।
सूक्ष्म वेद में परमेश्वर ने कहा है कि :-
"सोहं" शब्द हम जग में लाए, सारशब्द हम गुप्त छिपाए।
भावार्थ :- परमेश्वर ने स्वयं "सोहं" शब्द भक्ति के लिए बताया है। यह सोहं मन्त्र किसी भी प्राचीन ग्रन्थ (वेद, गीता, कुर्भान, पुराण तथा बाईबल) में नहीं है। फिर सूक्ष्म वेद में कहा है कि :-
सोहं ऊपर और है, सत्य सुकृत एक नाम। सब हंसो का जहाँ बास है, बस्त�� है बिन ठाम ।।
भावार्थ :- "सोहं" नाम तो परमात्मा ने प्रकट कर दिया, अविष्कार कर दिया परन्तु सार शब्द को गुप्त रखा था। अब मुझे (लेखक संत रामपाल को) बताया है जो साधकों को दीक्षा के समय बताया जाता है। इसका गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में कहे "ऊँ तत् सत्" से सम्बन्ध है।
विवचन : ऋग्वद मण्डल 9 सूक्त 94 मन्त्र 1 का अनुवाद भा आयसमाज के विद्वानों द्वारा किया गया है। पुस्तक विस्तार को ध्यान में रखते हुए उन्हीं के अनुवाद से अपना मत सिद्ध करते हैं। जैसे पूर्व में लिखे वेदमन्त्र में बताया गया है कि परमात्मा अपने मुख कमल से वाणी उच्चारण करके तत्वज्ञान बोलता है, लोकोक्तियों के माध्यम से, कवित्व से दोहों, शब्दों, साखियों, चौपाईयों के द्वारा वाणी बोलने से प्रसिद्ध कवियों में से भी एक कवि की उपाधि प्राप्त करता है। उसका नाम कविर्देव अर्थात कबीर साहेब है। इस ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मन्त्र 1 में भी यही स्पष्ट है कि जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, वह (कवियन् व्रजम् न) कवियों की तरह आचरण करता हुआ पृथ्वी पर विचरण करता है।
विवेचन :- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 20 मन्त्र 1 का अनुवाद भी आर्यसमाज के विद्वानों ने किया है। इसका अनुवाद ठीक कम, गलत अधिक है। इसमें मूल पाठ में लिखा है :-
'प्र कविर्देव वीतये अव्यः वारेभिः अर्षति साहान् बिश्वाः अभि स्पृस्धः सरलार्थ :- (प्र) वेद ज्ञान दाता से जो दूसरा (कविर्देव) कविर्देव कबीर परमेश्वर है, वह विद्वानों अर्थात् जिज्ञासुओं को, (वीतये) ज्ञान धन की तृप्ति के लिए (वारेभिः) श्रेष्ठ आत्माओं को (अर्षति) ज्ञान देता है। वह (अव्यः) अविनाशी है, रक्षक है, (साहान्) सहनशील (विश्वाः) तत्वज्ञान हीन सर्व दुष्टों को (स्पृधः) अध्यात्म ज्ञान की कृपा स्पर्धा अर्थात् ज्ञान गोष्ठी रूपी वाक् युद्ध में (अभि) पूर्ण रूप से तिरस्कृत करता है, उनको फिट्टे मुँह कर देता है। विशेष : (क) इस मन्त्र के अनुवाद में आप फोटोकापी में देखेंगे तो पता चलेगा कि कई शब्दों के अर्थ आर्य विद्वानों ने छोड़ रखे हैं जैसे = "प्र" "वारेभिः" जिस कारण से वेदों का यथार्थ भाव सामने नहीं आ सका।
(ख) मेरे अनुवाद से स्पष्ट है कि वह परमात्मा अच्छी आत्माओं (दृढ़ भक्तों) को ज्ञान देता है, उस परमात्मा का नाम भी लिखा है: "कविर्देव"। हम कबीर परमेश्वर कहते हैं।
विवेचन : ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 54 मन्त्र 3 की फोटोकापी में आप देखें, इसका अनुवाद आर्यसमाज के विद्वानों ने किया है। उनके अनुवाद में भी स्पष्ट है कि वह परमात्मा (भूवनोपरि) सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के ऊर्ध्व अर्थात् ऊपर (तिष्ठति) विराजमान है, ऊपर बैठा है:-
इसका यथार्थ अनुवाद इस प्रकार है :-
(अयं) यह (सोमः देव) अमर परमेश्वर (सूर्यः) सूर्य के (न) समान (विश्वानि) सर्व को (पुनानः) पवित्र करता हुआ (भूवनोपरि) सर्व ब्रह्माण्डों के ऊर्ध्व अर्थात् ऊपर (तिष्ठति) बैठा है।
भावार्थ :- जैसे सूर्य ऊपर है और अपना प्रकाश तथा उष्णता से सर्व को लाभ दे रहा है। इसी प्रकार यह अमर परमेश्वर जिसका ऊपर के मन्त्रों में वर्णन किया है। सर्व ब्रह्माण्डों के ऊ��र बैठकर अपनी निराकार शक्ति से सर्व प्राणियों को लाभ दे रहा है तथा सर्व ब्रह्माण्डों का संचालन कर रहा है।
तर्क :- महर्षि दयानन्द का अर्थात् आर्यसमाजियों का मत है कि परमात्मा किसी एक स्थान पर किसी लोक विशेष में नहीं रहता।
प्रमाण :- सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास (Chapter) नं. 7 पृष्ठ 148 पर (आर्य साहित्य प्रचार ट्रस्ट 427 गली मन्दिर वाली नया बांस दिल्ली-78वां संस्करण) किसी ने प्रश्न किया ईश्वर व्यापक है वा किसी देश विशेष में रहता है? उत्तर (महर्षि दयानन्द जी का) व्यापक है क्योंकि जो एक देश में रहता तो सर्व अन्तर्यामी, सर्वज्ञ, सर्वनियन्ता, सब का सृष्टा, सब का धर्ता और प्रलयकर्ता नहीं हो सकता। अप्राप्त देश में कर्ता की क्रिया का होना असम्भव है। (सत्यार्थ प्रकाश से लेख समाप्त)
महर्षि दयानन्द जी नहीं मानते थे कि परमात्मा किसी देश अर्थात् स्थान विशेष पर रहता है। महर्षि दयानन्द जी वेद ज्ञान को सत्य ज्ञान मानते थे। आप जी ने अनेकों वेदमन्त्रों में अपनी आँखों पढ़ा कि परमेश्वर ऊपर एक स्थान पर रहता है। वहाँ से गति करके यहाँ भी प्रकट होता है। महर्षि दयानन्द तथा आर्यसमाजी परमात्मा को निराकार मानते हैं।
प्रमाण :- सत्यार्थ प्रकाश के समुल्लास नं. 9 पृष्ठ 176, समुल्लास 7 पृष्ठ 149 समुल्लास 11 पृष्ठ 251 पर कहा है कि परमात्मा निराकार है।
प्रिय पाठकों ने अनेकों वेदमंत्रों में पढ़ा कि परमात्मा साकार है, वह मनुष्य जैसा है। ऊपर के लोक में रहता है, वहाँ से गति करके चलकर आता है, पृथ्वी पर प्रकट होता है। अच्छी आत्माओं को जो दृढ़ भक्त होते हैं, उनको मिलता है। उनको तत्वज्ञान अपने मुख कमल से बोलकर सुनाता है, कवियों की तरह आचरण करता है। पृथ्वी पर विचरण करके परमात्मा अपना अध्यात्म ज्ञान ऊँचे स्वर में उच्चारण करके सुनाता है।
गीता अध्याय 4 श्लोक 32 में भी यही प्रमाण है।
प्रिय पाठको! आप स्वंय निर्णय करें किसको कितना अध्यात्म ज्ञान था। विशेष आश्चर्य यह है कि वेद मन्त्रों का अनुवाद भी महर्षि दयानन्द जी तथा उनके चेलों आर्यसमाजियों ने किया हुआ है। जिसमें उनके मत का विरोध है। > निवेदन वेद मन्त्रों की फोटोकापियाँ लगाने का उद्देश्य यह है कि यदि मैं (लेखक) अनुवाद करके पुस्तक में लगाता तो अन्य व्यक्ति यह कह देते कि संत रामपाल को संस्कृत भाषा का ज्ञान नहीं है। इसलिए इनके अनुवाद पर विश्वास नहीं किया जा सकता। अब यह शंका उत्पन्न नहीं हो सकती। अब तो यह दृढ़ता आएगी कि संत रामपाल दास ने जो वेद मन्त्रों का अनुवाद किया है, वह यथार्थ है।
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श्रावण मास में शिव जलाभिषेक का कारण
श्रावण मास में शिव जलाभिषेक का कारण
इतिहास महत्व और करने योग्य उपाय
पौराणिक कथाओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब समुद्र मंथन से हलाहल धरती पर प्रकट हुआ था और समस्त मानव और ��न्य जीव जंतुओं के प्राणों पर संकट घिर आया था तब देवों के देव, महादेव ने सम्पूर्ण सृष्टि को जीवनदान दिया था। उन्होंने हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया था। कहा जाता है की यह घटना सावन के महीने में घटित हुई थी। महादेव के विष पान से उनका शरीर गर्म हो गया था और उन्हें परेशानी हो रही थी। अपने प्रभु को परेशानी में देख समस्त देवताओं ने महादेव पर जल अर्पित किया था और इंद्र देव ने ज़ोरों की वर्षा की थी। तब से यह चलन बन गया और हर वर्ष सावन के महीने में भगवान शिव के शरीर में विष की गर्मी से उत्पन्न हुई ज्वाला को शांत करने के लिए भक्तगण अपने भोलेनाथ पर जलाभिषेक करते हैं।
सावन का पावन महीना अर्थात् शिव की भक्ति व मनचाहा वरदान पाने का सर्वोत्तम समय है। कैलाशपति शिव जी को कंठ में विष होने के कारण शीतलता अत्यन्त प्रिय है, जिससे उन्हें राहत मिलती है। हरियाली और शीतलता होने के कारण भोलेनाथ को सावन का माह अत्यधिक प्रिय है। अब सावन है तो बारिश होना स्वाभाविक है। वर्षा का जल शुद्ध और ताज़ा होता है, इसलिए वर्षा जल से अभिषेक करने का फल भी अधिक है। हम बताने जा रहे हैं दिनों के अनुसार किसका अभिषेक करने से आपकी इच्छा शीघ्र और सरलता से पूरी हो जाएगी।
रविवार- शत्रुओं पर विजय
सूर्य देव को समर्पित रविवार के दिन सूर्योदय के समय पूर्व दिशा की ओर वर्षा जल से अर्घ्य दें और श्रीआदित्यहृदयस्तोत्र का पाठ करें। इस उपाय से आपको आपके शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी और आपके घर में सकारात्मकता का संचार होगा।
सोमवार- हर मनोकामना पूर्ण
चंद्र देव को समर्पित दिन सोमवार को शिवलिंग पर द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति पढ़ते हुए अभिषेक करने से सच्चे मन से की गई हर प्रार्थना भोलेनाथ पूर्ण करते हैं और मन व परिवार में सुख-शांति का संचार होता है।
मंगलवार- रोग व कष्टों का नाश
मंगलवार को शिवलिंग या हनुमान जी पर शुद्ध तन व पवित्र मन से “ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय नम:” बोलते हुए अभिषेक करने से व्यक्ति के समस्त कष्टों का नाश होता है तथा उसके असाध्य रोग भी समाप्त हो जाते हैं।
बुधवार- सद् बुद्धि एवं शादी-विवाह हेतु
बुद्धि में वृद्धि हेतु या शादी-विवाह में आ रही अड़चन को दूर करने के लिए बुधवार को प्रथम पूज्य गणेश जी का “ॐ गं गणपतये नम:” मंत्र केसाथ अभिषेक करने से शीघ्र लाभ मिलता है। परीक्षा की तैयारी करनी हो या विवाह हेतु अच्छे रिश्ते की कामना हो, गणपति की कृपा से सब निर्विघ्न हो जाता है।
गुरुवार- सुख-समृद्धि ��ी प्राप्ति
बृहस्पति देव को समर्पित दिन गुरुवार या एकादशी को वर्षा जल से श्री विष्णु जी का अभिषेक करना चाहिए और श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिये। जिससे श्री हरि प्रसन्न होकर व्यक्ति को सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं।
शुक्रवार- धन-धान्य की वर्षा
सावन में शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी का भाव पूर्वक लक्ष्मी मंत्र के साथ अभिषेक करने उनकी कृपा से आपके पास शीघ्र ही धन लक्ष्मी का शुभागमन होता है। अभिषेक करने वाले भक्त के ऊपर माँ लक्ष्मी की कृपा से धन की वर्षा होती है।
शनिवार- वाद-विवाद में सफलता
कर्मफल दाता शनिदेव को समर्पित शनिवार के दिन प्रात: पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाने व महादेव का अभिषेक और शाम को शनिदेव का तेल और वर्षा जल से अभिषेक करने से क़ानूनी मामलों, वाद-विवाद व नौकरी में सफलता मिलती है। रुके हुए काम बनने शुरू हो जाते हैं। पीपल पर जल चढ़ाते समय “ॐ नमो भगवते शनैश्चराय” मंत्र का ग्यारह बार जप करना चाहिए।
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Today's Horoscope -
10 अगस्त 2024 शनिवार : आज क्या कहते हैं आपके सितारे जाने अपना राशिफल
मेष - आज लाभ में वृद्धि होगी। व्यापार अच्छा रहेगा। नौकरी में चैन रहेगा। निवेश शुभ रहेगा। किसी वरिष्ठ व्यक्ति का सहयोग प्राप्त होगा। बेचैनी रहेगी। चोट व रोग से बचें। विवेक से कार्य करें। पूजा-पाठ में मन लगेगा। कोर्ट व कचहरी के काम बनेंगे। अध्यात्म में रुचि बढ़ेगी। मान-सम्मान मिलेगा। प्रसन्नता रहेगी।
वृषभ - कोर्ट व कचहरी में लाभ की स्थिति बनेगी। नौकरी में अधिकारी प्रसन्न रहेंगे। पिछले लंबे समय से रुके कार्य बनेंगे। प्रसन्नता रहेगी। दूसरों से अपेक्षा न करें। घर-परिवार की चिंता रहेगी। अज्ञात भय सताएगा। दुष्टजन हानि पहुंचा सकते हैं। व्यापार लाभदायक रहेगा। प्रयास करें।
मिथुन - भूमि-भवन संबंधित कार्य बड़ा लाभ दे सकते हैं। निवेश शुभ रहेगा। उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे। रोजगार प्राप्ति के प्रयास सफल रहेंगे। व्यापार अच्छा चलेगा। नौकरी में अनुकूलता रहेगी। मातहतों का सहयोग मिलेगा। कर्ज की रकम चुक��� पाएंगे। प्रतिद्वंद्वी सक्रिय रहेंगे। आलस्य न करें।
कर्क - रचनात्मक क��र्य सफल रहेंगे। पार्टी व पिकनिक का आनंद मिलेगा। शत्रु परास्त होंगे। व्यापार ठीक चलेगा। निवेश में जल्दबाजी न करें। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। वाणी पर संयम रखें। अनहोनी की आशंका रहेगी। पारिवारिक जीवन सुख-शांति से बीतेगा। प्रसन्नता रहेगी।
सिंह - आय बनी रहेगी। बेवजह दौड़धूप रहेगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। कोई शोक समाचार मिल सकता है। अपेक्षित कार्यों में बाधा उत्पन्न हो सकती है। पार्टनरों से मतभेद संभव है। व्यवसाय की गति धीमी रहेगी। दूसरों को कार्य में हस्तक्षेप न करें। दुष्टजन हानि पहुंचा सकते हैं।
कन्या - आज सामाजिक कार्य करने का मन बनेगा। मेहनत का फल मिलेगा। मान-सम्मान मिलेगा। निवेश शुभ रहेगा। व्यापार में वृद्धि होगी। भाग्य का साथ मिलेगा। नए काम करने की इच्छा बनेगी। प्रसन्नता रहेगी। पारिवारिक सहयोग मिलेगा। मनोरंजन का वक्त मिलेगा। जोखिम व जमानत के कार्य बिलकुल न करें।
तुला - पराक्रम व प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। उत्साहवर्धक सूचना प्राप्त होगी। ऐश्वर्य के साधनों पर व्यय होगा। भूले-बिसरे साथियों से मुलाकात होगी। मित्रों तथा पारिवारिक सदस्यों के साथ समय अच्छा व्यतीत होगा। व्यवसाय लाभप्रद रहेगा। निवेश शुभ रहेगा। शत्रुओं का पराभव होगा। प्रमाद न करें।
वृश्चिक- नौकरी में प्रमोशन मिल सकता है। रोजगार प्राप्ति होगी। जीवनसाथी से सहयोग प्राप्त होगा। भेंट व उपहार की प्राप्ति होगी। यात्रा लाभदायक रहेगी। किसी बड़ी समस्या का हल निकलेगा। प्रसन्नता रहेगी। भाग्य अनुकूल है। लाभ लें। प्रमाद न करें। स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
धनु - कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। यात्रा में कोई चीज भूलें नहीं। फालतू खर्च होगा। स्वास्थ्य का पाया कमजोर रहेगा। लापरवाही न करें। बनते काम बिगड़ सकते हैं। विवेक का प्रयोग करें। लाभ होगा। लाभ में कमी रह सकती है। नौकरी में कार्यभार रहेगा। आलस्य न करें।
मकर - डूबी हुई रकम प्राप्त हो सकती है। यात्रा लाभदायक रहेगी। किसी बड़ी समस्या से सामना हो सकता है। व्यापार में वृद्धि के योग हैं। पार्टनरों का सहयोग मिलेगा। नौकरी में चैन रहेगा। व्यवसाय में अधिक ध्यान देना पड़ेगा। किसी अपने का व्यवहार दु:ख पहुंचाएगा। कानूनी समस्या हो सकती है।
कुंभ- आय में वृद्धि होगी। सुख के साधनों पर व्यय होगा। सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। योजना फलीभूत होगी। किसी बड़ी समस्या का हल एकाएक हो सकता है। प्रसन्नता रहेगी। प्रयास अधिक करना पड़ेंगे। नौकरी में अधिकार बढ़ेंगे। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। प्रमाद न करें।
मीन - रुके कार्यों में गति आएगी। तंत्र-मंत्र में रुचि बढ़ेगी। कानूनी सहयोग मिलेगा। लाभ में वृद्धि होगी। सत्संग का लाभ मिलेगा। शेयर मार्केट से लाभ होगा। घर-बाहर पूछ-परख रहेगी। व्यापार में वृद्धि होगी। भाग्य का साथ रहेगा। थकान महसूस हो सकती है। आलस्य हावी रहेगा।
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🌞 *~आज दिनांक -22 जुलाई 2024का वैदिक पंचांग ~* 🌞
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🌤️ *दिनांक -22 जुलाई 2024*
🌤️ *दिन - सोमवार*
🌤️ *विक्रम संवत - 2081 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2080)*
🌤️ *शक संवत -1946*
🌤️ *अयन - दक्षिणायन*
🌤️ *ऋतु - वर्षा ॠतु*
🌤️ *मास - श्रावण (गुजरात महाराष्ट्र अनुसार आषाढ)*
🌤️ *पक्ष - कृष्ण*
🌤️ *तिथि - प्रतिपदा दोपहर 01:11 तक तत्��श्चात द्वितीया*
🌤️ *नक्षत्र - श्रवण रात्रि 10:21 तक तत्पश्चात धनिष्ठा*
🌤️ *योग - प्रीति शाम 05:58 तक तत्पश्चात आयुष्मान*
🌤️ *राहुकाल - सुबह 07:48 से सुबह 09:27 तक*
🌤️ *सूर्योदय -06:09*
🌤️ *सूर्यास्त- 19:20*
👉 *दिशाशूल - पूर्व दिशा मे*
🚩 *व्रत पर्व विवरण- पूर्णिमांत*
*श्रावण मास आरंभ,अशून्य शयन व्रत*
💥 *विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा पेठा) न खाएं क्योकि यह धन का नाश करने वाला है (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)*
🌞 *~ वैदिक पंचांग ~* 🌞
🌷 *श्रावणमास* 🌷
🙏🏻 *भगवान शिव का पवित्र श्रावण (सावन) मास 22 जुलाई 2024 सोमवार से शुरू हो रहा है, (उत्तर भारत हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार) (गुजरात एवं महाराष्ट्र के अनुसार अषाढ़ मास चल रहा है वहा 05 अगस्त, सोमवार से श्रावण (सावन) मास आरंभ होगा)*
🙏🏻 *श्रावण हिन्दू धर्म का पञ्चम महीना है। श्रावण मास शिवजी को विशेष प्रिय है । भोलेनाथ ने स्वयं कहा है—*
🌷 *द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभ: । श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत: ।।*
*श्रवणर्क्षं पौर्णमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृत:। यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यत: ।।*
➡ *अर्थात मासों में श्रावण मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है अतः इसे श्रावण कहा जाता है। इस मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है, इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है।*
🙏🏻 *श्रावण मास में शिवजी की पूजाकी जाती है | “अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम्” श्रावण मास में अकालमृत्यु दूर कर दीर्घायु की प्राप्ति के लिए तथा सभी व्याधियों को दूर करने के लिए विशेष पूजा की जाती है। मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए श्रावण माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।*
🙏🏻 *श्रावण मास में मनुष्य को नियमपूर्वक नक्त भोजन करना चाहिए ।*
➡ *श्रावण मास में सोमवार व्रत का अत्यधिक महत्व है*
🌷 *“स्वस्य यद्रोचतेऽत्यन्तं भोज्यं वा भोग्यमेव वा। सङ्कल्पय द्विजवर्याय दत्वा मासे स्वयं त्यजेत् ।।”*
🙏🏻 *श्रावण में सङ्कल्प लेकर अपनी स��से प्रिय वस्तु (खाने का पदार्थ अथवा सुखोपभोग) का त्याग कर देना चाहिए और उसको ब्राह्मणों को दान देना चाहिए।*
🌷 *“केवलं भूमिशायी तु कैलासे वा समाप्नुयात”*
🙏🏻 *श्रावण मास में भूमि पर शयन का विशेष महत्व है। ऐसा करने से मनुष्य कैलाश में निवास प्राप्त करता है।*
➡ *शिवपुराण के अनुसार श्रावण में घी का दान पुष्टिदायक है।*
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Sadhna TV Satsang || 22-10-2024 || Episode: 3064 || Sant Rampal Ji Mahar...
*🌼बन्दीछोड़ सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी की जय हो🌼*
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22/10/24
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1🍀भक्ति से भगवान तक
चार मुक्ति जहाँ चम्पी करती, माया हो रही दासी।
दास गरीब अभय पद परसै, मिले राम अविनाशी।।
सनातन परम धाम में परम शान्ति तथा अत्यधिक सुख है। काल ब्रह्म के लोक चार मुक्ति मानी जाती है, परंतु वे स्थाई नहीं हैं। कुछ समय उपरांत पुण्य समाप्त होते ही फिर 84 लाख प्रकार की योनियों में कष्ट उठाता है। परंतु उस सत्यलोक में चारों मुक्ति वाला सुख सदा बना रहेगा। माया आपकी नौकरानी बनकर रहेगी।
2🍀शास्त्रानुकूल भक्ति से भगवान तक
पूर्ण मोक्ष के लिए शास्त्रानुकूल भक्ति करनी चाहिए जिससे उस भगवान तक जाया जा सकता है।
संत रामपाल जी महाराज वर्तमान में शास्त्रानुकूल भक्ति बता रहे हैं जिससे साधक का मोक्ष हो जाता है।
3🍀सतभक्ति से भगवान तक
सतगुरू मिलैं तो इच्छा मेटैं, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।
यदि तत्वदर्शी संत सतगुरू मिलें तो तत्वज्ञान बताकर काल ब्रह्म के लोक की सर्व वस्तुओं से तथा पदों से इच्छा समाप्त करके शास्त्रविधि अनुसार साधना बताकर परमेश्वर के उस परम पद की प्राप्ति करा देता है जहाँ जाने के पश्चात् फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। हे भक्त! चल तुझे उस लोक में भेज दूँ जो आदि अमर अस्थान है अर्थात गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में वर्णित सनातन परम धाम है जहाँ पर परम शांति है।
4🍀भक्ति से भगवान तक
केवल परम अक्षर ब्रह्म ही अविनाशी राम अर्थात प्रभु है। इस परमेश्वर की भक्ति से ही परमशांति तथा सनातन परम धाम अर्थात पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा जहाँ पर चार मुक्ति का सुख सदा रहेगा।
5🍀 शास्त्रविधि अनुसार भक्ति से भगवान
सूक्ष्मवेद में कहा है किः-
कबीर, माया दासी संत की, उभय दे आशीष।
विलसी और लातों छड़ी, सुमर-सुमर जगदीश।।
सर्व सुख-सुविधाऐं धन से होती हैं। वह धन शास्त्रविधि अनुसार भक्ति करने वाले संत-भक्त की भक्ति का By Product होता है।
सत्य साधना करने वाले को अपने आप धन माया मिलती है। साधक उसको भोगता है, धन का अभाव नहीं रहता।
6🍀 ऐसे मिलेगा भगवान
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी की भक्ति करके माया का भी आनन्द भक्त, संत प्राप्त करते हैं तथा पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त करते हैं।
यह रहस्य तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ने ही बताया है।
7🍀परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) को कैसे प्राप्त करेंगे?
परमेश्वर प्राप्ति के लिए नाम का जाप करना होता है।
सूक्ष्मवेद में लिखा है:-
कबीर, कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार।
योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार।।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
8🍀 ऐसे मिलेगा भगवान
कलयुग केवल नाम आधारा, सुमर-सुमर नर उतरे पारा। (रामायण)
पूर्व के युगों में मानव की आयु लम्बी होती थी। ऋषि व साधक हठयोग करके हजारों वर्षों तक तप साधना करते रहते थे। अब कलयुग में मनुष्य
की औसतन आयु लगभग 75-80 वर्ष रह गई है। इतने कम समय में हठयोग साधना नहीं कर सकोगे। इसलिए अतिशीघ्र पूर्ण गुरू जी से दीक्षा लेकर अपने जीवन का शेष समय संभाल लें। भक्ति करके इसका सदुपयोग कर लो।
-संत रामपाल जी महाराज
9🍀भक्ति से भगवान तक कैसे पहुँचेंगे?
कबीर, नाम लिय तिन सब लिया सकल बेद का भेद।
बिन नाम नरकै पड़ा, पढ़कर चारों वेद।।
यदि कोई व्यक्ति चारों वेदों को पढ़ता रहा और नाम जाप किया नहीं तो वह भक्ति की शक्ति से रहित होकर नरक में गिरेगा और जिसने विधिवत दीक्षा लेकर नाम का जाप किया तो समझ लो उसने सर्व वेदों का रहस्य जान लिया।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज शास्त्र प्रमाणित मंत्र देते हैं जिससे मोक्ष के साथ यहां भी सर्व सुख मिलते हैं।
10🍀 भक्ति से भगवान तक पहुँचने के लिए मध्यस्थ की आवश्यकता पड़ती है, जिसे मार्गदर्शक या गुरू, सतगुरू कहते हैं।
परमात्मा का विधान है जो सूक्ष्मवेद में कहा है:-
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोंनो निष्फल है, पूछो वेद पुराण।।
गुरू बिन नाम जाप की माला फिराते हैं या दान देते हैं, वह व्यर्थ है। यह वेदों तथा पुराणों में भी प्रमाण है। यदि दीक्षा लेकर फिर गुरू को छोड़कर उन्हीं मन्त्रों का जाप करता रहे तथा यज्ञ, हवन, दान भी करता रहे, वह भी व्यर्थ है। उसको कोई लाभ नहीं होगा।
कबीर, तांते सतगुरू शरणा लीजै, कपट भाव सब दूर करिजै।
गुरू पूरा हो, झूठे गुरू से कोई लाभ नहीं होता।
वर्तमान में धरती पर पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो शास्त्र प्रमाणित भक्ति और लाभ देते हैं।
11🍀 पूरे गुरू की क्या पहचान है?
सूक्ष्मवेद में गुरू के लक्षण बताए हैं:-
गरीब, सतगुरू के लक्षण कहूँ, मधुरे बैन विनोद।
चार वेद छः शास्त्र, कह अठारह बोध।।
सन्त गरीबदास जी ने गुरू की पहचान बताई है कि जो सच्चा गुरू अर्थात सतगुरू होगा, वह ऐसा ज्ञान बताता है कि उसके वचन आत्मा को आनन्दित कर देते हैं, बहुत मधुर लगते हैं क्योंकि वे सत्य पर आधारित होते हैं। कारण है कि सतगुरू चार वेदों तथा सर्व शास्त्रों का ज्ञान विस्तार से कहता है।
वह पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
12🍀 कैसे होगी भगवान प्राप्ति?
सामवेद मंत्र संख्या 822 के अनुसार, तीन मंत्रों के जाप से परमात्मा की प्राप्ति होती है जिसका संकेत पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में "ॐ, तत्, सत्" के रूप में किया गया है। जिन्हें वर्तमान में केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रदान किया जाता है।
13🍀ऐसे मिलेगा भगवान
कुरआन मजीद, सूरः अश् शूरा-42 आयत नं. 2 में अैन, सीन, काफ, गीता अध्याय 17 श्लोक 23 के ओम्, तत्, सत् वाले ही सांकेतिक मंत्र (कलमा) हैं। इस तीन मंत्र के जाप से सब पाप नाश हो जाते हैं। कर्म का दंड समाप्त हो जाता है और पूर्ण परमात्मा (कादिर अल्लाह) की प्राप्ति होती है।
14🍀ऐसे मिलेगा भगवान
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 और यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 के अनुसार पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी संत की तलाश करनी चाहिए। जिनके द्वारा बताई शास्त्र अनुकूल भक्ति से साधक को ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 49 मंत्र 1 में वर्णित सुख और मोक्ष के साथ-साथ परमात्मा की प्राप्ति होती है।
15🍀कैसे मिलेगा भगवान?
ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 1 मंत्र 5, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मंत्र 3, अथर्ववेद कांड 4 अनुवाक 1 मंत्र 7 के मुताबिक, सनातन परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) जी हैं। जिन्होंने सर्व ब्रह्मांडों की रचना की है। जिनकी प्राप्ति यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 के अनुसार तत्वदर्शी संत द्वारा बताई सतभक्ति से ही संभव है।
16🍀गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा गया है कि उत्तम पुरुष यानि पूर्ण परमात्मा तो कोई और है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उस परमात्मा को प्राप्त करने की विधि क्या है? जानने के लिए देखिए
17🍀ऐसे मिलेगा भगवान
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाने के पश्चात् गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित उस परमेश्वर के परम पद को भलीभाँति खोजना चाहिए जिसमें गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परम अक्षर ब्रह्म से आदि रचना-सृष्टि उत्पन्न हुई है। अर्थात परम अक्षर ब्रह्म की प्राप्ति तत्वदर्शी संत के द्वारा बताई भक्ति से ही संभव है।
18🍀ऐसे मिलेगा भगवान
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मंत्र 1-2, ऋग्वेद मण्डल 86 मंत्र 26-27 के अनुसार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) जी हैं। जिनकी प्राप्ति पूर्ण संत द्वारा बताई शास्त्र अनुकूल भक्ति करने से ही हो सकती है।
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🍀भक्ति से भगवान तक
चार मुक्ति जहाँ चम्पी करती, माया हो रही दासी।
दास गरीब अभय पद परसै, मिले राम अविनाशी।।
सनातन परम धाम में परम शान्ति तथा अत्यधिक सुख है। काल ब्रह्म के लोक चार मुक्ति मानी जाती है, परंतु वे स्थाई नहीं हैं। कुछ समय उपरांत पुण्य समाप्त होते ही फिर 84 लाख प्रकार की योनियों में कष्ट उठाता है। परंतु उस सत्यलोक में चारों मुक्ति वाला सुख सदा बना रहेगा। माया आपकी नौकरानी बनकर रहेगी।
🍀शास्त्रानुकूल भक्ति से भगवान तक
पूर्ण मोक्ष के लिए शास्त्रानुकूल भक्ति करनी चाहिए जिससे उस भगवान तक जाया जा सकता है।
संत रामपाल जी महाराज वर्तमान में शास्त्रानुकूल भक्ति बता रहे हैं जिससे साधक का मोक्ष हो जाता है।
🍀सतभक्ति से भगवान तक
सतगुरू मिलैं तो इच्छा मेटैं, पद मिल पदे समाना।
चल हंसा उस लोक पठाऊँ, जो आदि अमर अस्थाना।।
यदि तत्वदर्शी संत सतगुरू मिलें तो तत्वज्ञान बताकर काल ब्रह्म के लोक की सर्व वस्तुओं से तथा पदों से इच्छा समाप्त करके शास्त्रविधि अनुसार साधना बताकर परमेश्वर के उस परम पद की प्राप्ति करा देता है जहाँ जाने के पश्चात् फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते। हे भक्त! चल तुझे उस लोक में भेज दूँ जो आदि अमर अस्थान है अर्थात गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में वर्णित सनातन परम धाम है जहाँ पर परम शांति है।
🍀भक्ति से भगवान तक
केवल परम अक्षर ब्रह्म ही अविनाशी राम अर्थात प्रभु है। इस परमेश्वर की भक्ति से ही परमशांति तथा सनातन परम धाम अर्थात पूर्ण मोक्ष प्राप्त होगा जहाँ पर चार मुक्ति का सुख सदा रहेगा।
🍀 शास्त्रविधि अनुसार भक्ति से भगवान
सूक्ष्मवेद में कहा है किः-
कबीर, माया दासी संत की, उभय दे आशीष।
विलसी और लातों छड़ी, सुमर-सुमर जगदीश।।
सर्व सुख-सुविधाऐं धन से होती हैं। वह धन शास्त्रविधि अनुसार भक्ति करने वाले संत-भक्त की भक्ति का By Product होता है।
सत्य साधना करने वाले को अपने आप धन माया मिलती है। साधक उसको भोगता है, धन का अभाव नहीं रहता।
🍀 ऐसे मिलेगा भगवान
पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जी की भक्ति करके माया का भी आनन्द भक्त, संत प्राप्त करते हैं तथा पूर्ण मोक्ष भी प्राप्त करते हैं।
यह रहस्य तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ने ही बताया है।
🍀परमेश्वर (परम अक्षर ब्रह्म) को कैसे प्राप्त करेंगे?
परमेश्वर प्राप्ति के लिए नाम का जा��� करना होता है।
सूक्ष्मवेद में लिखा है:-
कबीर, कलयुग में जीवन थोड़ा है, कीजे बेग सम्भार।
योग साधना बने नहीं, केवल नाम आधार।।
अधिक जानकारी के लिए अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा।
🍀 ऐसे मिलेगा भगवान
कलयुग केवल नाम आधारा, सुमर-सुमर नर उतरे पारा। (रामायण)
पूर्व के युगों में मानव की आयु लम्बी होती थी। ऋषि व साधक हठयोग करके हजारों वर्षों तक तप साधना करते रहते थे। अब कलयुग में मनुष्य
की औसतन आयु लगभग 75-80 वर्ष रह गई है। इतने कम समय में हठयोग साधना नहीं कर सकोगे। इसलिए अतिशीघ्र पूर्ण गुरू जी से दीक्षा लेकर अपने जीवन का शेष समय संभाल लें। भक्ति करके इसका सदुपयोग कर लो।
-संत रामपाल जी महाराज
🍀भक्ति से भगवान तक कैसे पहुँचेंगे?
कबीर, नाम लिय तिन सब लिया सकल बेद का भेद।
बिन नाम नरकै पड़ा, पढ़कर चारों वेद।।
यदि कोई व्यक्ति चारों वेदों को पढ़ता रहा और नाम जाप किया नहीं तो वह भक्ति की शक्ति से रहित होकर नरक में गिरेगा और जिसने विधिवत दीक्षा लेकर नाम का जाप किया तो समझ लो उसने सर्व वेदों का रहस्य जान लिया।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज शास्त्र प्रमाणित मंत्र देते हैं जिससे मोक्ष के साथ यहां भी सर्व सुख मिलते हैं।
🍀 भक्ति से भगवान तक पहुँचने के लिए मध्यस्थ की आवश्यकता पड़ती है, जिसे मार्गदर्शक या गुरू, सतगुरू कहते हैं।
परमात्मा का विधान है जो सूक्ष्मवेद में कहा है:-
कबीर, गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
गुरू बिन दोंनो निष्फल है, पूछो वेद पुराण।।
गुरू बिन नाम जाप की माला फिराते हैं या दान देते हैं, वह व्यर्थ है। यह वेदों तथा पुराणों में भी प्रमाण है। यदि दीक्षा लेकर फिर गुरू को छोड़कर उन्हीं मन्त्रों का जाप करता रहे तथा यज्ञ, हवन, दान भी करता रहे, वह भी व्यर्थ है। उसको कोई लाभ नहीं होगा।
कबीर, तांते सतगुरू शरणा लीजै, कपट भाव सब दूर करिजै।
गुरू पूरा हो, झूठे गुरू से कोई लाभ नहीं होता।
वर्तमान में धरती पर पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं जो शास्त्र प्रमाणित भक्ति और लाभ देते हैं।
🍀 पूरे गुरू की क्या पहचान है?
सूक्ष्मवेद में गुरू के लक्षण बताए हैं:-
गरीब, सतगुरू के लक्षण कहूँ, मधुरे बैन विनोद।
चार वेद छः शास्त्र, कह अठारह बोध।।
सन्त गरीबदास जी ने गुरू की पहचान बताई है कि जो सच्चा गुरू अर्थात सतगुरू होगा, वह ऐसा ज्ञान बताता है कि उसके वचन आत्मा को आनन्दित कर देते हैं, बहुत मधुर लगते हैं क्योंकि वे सत्य पर आधारित होते हैं। कारण है कि सतगुरू चार वेदों तथा सर्व शास्त्रों का ज्ञान विस्तार से कहता है।
वह पूर्ण सतगुरु संत रामपाल जी महाराज जी हैं।
🍀 कैसे होगी भगवान प्राप्ति?
सामवेद मंत्र संख्या 822 के अनुसार, तीन मंत्रों के जाप से परमात्मा की प्राप्ति होती है जिसका संकेत पवित्र गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में "ॐ, तत्, सत्" के रूप में किया गया है। जिन्हें वर्तमान में केवल तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज द्वारा प्रदान किया जाता है।
🍀ऐसे मिलेगा भगवान
कुरआन मजीद, सूरः अश् शूरा-42 आयत नं. 2 में अैन, सीन, काफ, गीता अध्याय 17 श्लोक 23 के ओम्, तत्, सत् वाले ही सांकेतिक मंत्र (कलमा) हैं। इस तीन मंत्र के जाप से सब पाप नाश हो जाते हैं। कर्म का दंड समाप्त हो जाता है और पूर्ण परमात्मा (कादिर अल्लाह) की प्राप्ति होती है।
🍀ऐसे मिलेगा भगवान
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 और यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 के अनुसार पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति के लिए तत्वदर्शी संत की तलाश करनी चाहिए। जिनके द्वारा बताई शास्त्र अनुकूल भक्ति से साधक को ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 49 मंत्र 1 में वर्णित सुख और मोक्ष के साथ-साथ परमात्मा की प्राप्ति होती है।
🍀कैसे मिलेगा भगवान?
ऋग्वेद मण्डल 1 सूक्त 1 मंत्र 5, ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मंत्र 3, अथर्ववेद कांड 4 अनुवाक 1 मंत्र 7 के मुताबिक, सनातन परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) जी हैं। जिन्होंने सर्व ब्रह्मांडों की रचना की है। जिनकी प्राप्ति यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 के अनुसार तत्वदर्शी संत द्वारा बताई सतभक्ति से ही संभव है।
🍀गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा गया है कि उत्तम पुरुष यानि पूर्ण परमात्मा तो कोई और है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है। उस परमात्मा को प्राप्त करने की विधि क्या है? जानने के लिए देखिए
🍀ऐसे मिलेगा भगवान
गीता अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 15 श्लोक 1 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाने के पश्चात् गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित उस परमेश्वर के परम पद को भलीभाँति खोजना चाहिए जिसमें गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस परम अक्षर ब्रह्म से आदि रचना-सृष्टि उत्पन्न हुई है। अर्थात परम अक्षर ब्रह्म की प्राप्ति तत्वदर्शी संत के द्वारा बताई भक्ति से ही संभव है।
🍀ऐसे मिलेगा भगवान
ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मंत्र 1-2, ऋग्वेद मण्डल 86 मंत्र 26-27 के अनुसार पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) जी हैं। जिनकी प्राप्ति पूर्ण संत द्वारा बताई शास्त्र अनुकूल भक्ति करने से ही हो सकती है।
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#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart40 के आगे पढिए.....)
📖📖📖
#हिन्दूसाहेबान_नहींसमझे_गीतावेदपुराणPart41
श्री ब्रह्मा, विष्णु, महेश जी के पुजारियों के कार्य"
तीनों देवताओं की पूजा करने वाले कैसे कर्म करते हैं। प्रमाण के लिए पेश हैं कुछ उदाहरण :-
विचार करें :- रावण ने भगवान शिव जी को मृत्युंजय, अजर-अमर, सर्वेश्वर मान कर भक्ति की, दस बार शीश काट कर समर्पित कर दिया, जिसके बदले में युद्ध के समय दस शीश रावण को प्राप्त हुए, परन्तु मुक्ति नहीं हुई, राक्षस कहलाया। यह दोष रावण के गुरुदेव का है जिस नादान (नीम-हकीम) ने वेदों को ठीक से न समझ कर अपनी सोच से तमोगुण युक्त भगवान शिव को ही पूर्ण परमात्मा बताया तथा भोली आत्मा रावण ने झूठे गुरुदेव पर विश्वास करके जीवन व अपने कुल का नाश किया।
1. एक भस्मागिरी नाम का साधक था, जिसने शिव जी (तमोगुण) को ही ईष्ट मान कर शीर्षासन (ऊपर को पैर नीचे को शीश) करके 12 वर्ष तक साधना की, भगवान शिव को वचन बद्ध करके भस्मकण्डा ले लिया। भगवान शिव जी को ही मारने लगा। उद्देश्य यह था कि भस्मकण्डा प्राप्त करके भगवान शिव जी को मार कर पार्वती जी को पत्नी बनाऊँगा। भगवान श्री शिव जी डर के मारे भाग गए, फिर श्री विष्णु जी (रूप में परमेश्वर कबीर जी) ने उस भस्मासुर को गंडहथ नाच नचा कर उसी भस्मकण्डे से भस्म किया। वह शिव जी (तमोगुण) का साधक राक्षस कहलाया। हरिण्यकशिपु ने भगवान ब्रह्मा जी (रजोगुण) की साधना की तथा राक्षस कहलाया।
2. एक समय आज (सन् 2013) से लगभग 342 वर्ष पूर्व हरिद्वार में हर की पैड़ियों पर (शास्त्र विधि रहित साधना करने वालों के) कुम्भ पर्व की प्रभी का संयोग हुआ। वहाँ पर सर्व (त्रिगुण उपासक) महात्मा जन स्नानार्थ पहुँचे। गिरी, पुरी, नाथ, नागा आदि भगवान श्री शिव जी (तमोगुण) के उपासक तथा वैष्णों, भगवान श्री विष्णु जी (सतोगुण) के उपासक हैं। प्रथम स्नान करने के लिए नागा तथा वैष्णों साधुओं में घोर युद्ध हो गया। लगभग 25000 (पच्चीस हजार) त्रिगुण उपासक मृत्यु को प्राप्त हुए। जो व्यक्ति जरा-सी बात पर नरसंहार (कत्ले आम) कर देता है, वह साधु है या राक्षस स्वयं विचार करें। आम व्यक्ति भी क��ीं स्नान कर रहे हों और कोई व्यक्ति आ कर कहे कि मुझे भी कुछ स्थान स्नान के लिए देने की कृपा करें। शिष्टाचार के नाते कहते हैं कि आओ आप भी स्नान कर लो। इधर-उधर हो कर आने वाले को स्थान दे देते हैं।
इसलिए पवित्र गीता जी अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 में कहा है कि मेरी त्रिगुणमई माया (रजगुण-ब्रह्मा जी, सतगुण-विष्णु जी, तमगुण-शिव जी) की पूजा के द्वारा जिनका ज्ञान हरा जा चुका है, वे केवल मान बड़ाई के भूखे राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, मनुष्यों में नीच अर्थात् आम व्यक्ति से भी पतित स्वभाव वाले, दुष्कर्म करने वाले मूर्ख मेरी भक्ति भी नहीं करते।
प्रश्न 37 :- गीता ज्ञान दाता ने अपनी भक्ति से होने वाली गति (मुक्ति) यानि ब्रह्मलोक प्राप्ति को अनुत्तम (घटिया) क्यों कहा?
उत्तर :- गीता अध्याय 7 श्लोक 16 से 18 तक पवित्र गीता जी के बोलने वाला (ब्रह्म) प्रभु कह रहा है कि मेरी भक्ति (ब्रह्म साधना) भी चार प्रकार के साधक करते हैं। एक तो अर्थार्थी (धन लाभ चाहने वाले) जो वेद मंत्रों से ही जंत्र-मंत्र, हवन आदि करते रहते हैं। दूसरे आर्त्त (संकट निवार्ण के लिए वेदों के मंत्रों का जन्त्र-मंत्र हवन आदि करते रहते हैं) तीसरे जिज्ञासु जो परमात्मा के ज्ञान को जानने की इच्छा रखने वाले केवल ज्ञान संग्रह करके वक्ता बन जाते हैं तथा दूसरों में ज्ञान श्रेष्ठता के आधार पर उत्तम बन कर ज्ञानवान बनकर अभिमानवश भक्ति हीन हो जाते हैं, चौथे ज्ञानी। वे साधक जिनको यह ज्ञान हो गया कि मानव शरीर बार-बार नहीं मिलता, इससे प्रभु साधना नहीं बन पाई तो जीवन व्यर्थ हो जाएगा। फिर वेदों को पढ़ा, जिनसे ज्ञान हुआ कि (ब्रह्मा-विष्णु-शिवजी) तीनों गुणों व ब्रह्म (क्षर पुरुष) तथा परब्रह्म (अक्षर पुरुष) से ऊपर पूर्ण ब्रह्म की ही भक्ति करनी चाहिए, अन्य देवताओं की नहीं। उन ज्ञानी उदार आत्माओं को मैं अच्छा लगता हूँ तथा मुझे वे इसलिए अच्छे लगते हैं कि वे तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु, तमगुण शिवजी) से ऊपर उठ कर मेरी (ब्रह्म) साधना तो करने लगे जो अन्य देवताओं से अच्छी है परन्तु वेदों में 'ओ३म्' नाम जो केवल ब्रह्म की साधना का मंत्र है उसी को वेद पढ़ने वाले विद्वानों ने अपने आप ही विचार विमर्श करके पूर्ण ब्रह्म का मंत्र जान कर वर्षों तक साधना करते रहे। प्रभु प्राप्ति हुई नहीं। अन्य सिद्धियाँ प्राप्त हो गई क्योंकि पवित्र गीता अध्याय 4 श्लोक 34 तथा पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10 में वर्णित तत्वदर्शी संत नहीं मिला, जो पूर्ण ब्रह्म की साधना तीन मंत्र से बताता है, इसलिए ज्ञानी भी ब्रह्म (काल) साधना करके जन्म-मृत्यु के चक्र में ही रह गए।
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••
आध्यात्मिक जानकारी के लिए आप संत रामपाल जी महाराज जी के मंगलमय प्रवचन सुनिए। Sant Rampal Ji Maharaj YOUTUBE चैनल पर प्रतिदिन 7:30-8.30 बजे। संत रामपाल जी महाराज जी इस विश्व में एकमात्र पूर्ण संत हैं। आप सभी से विनम्र निवेदन है अविलंब संत रामपाल जी महाराज जी से नि:शुल्क नाम दीक्षा लें और अपना जीवन सफल बनाएं।
https://online.jagatgururampalji.org/naam-diksha-inquiry
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क्या है भक्ति, कैसे करें सुफल भक्ति:
कैसा हो भक्ति का स्वरुप:
भक्ति का आशय भक्त अपने इष्टदेव अथवा देवी, ईश्वर (भगवत व भगवती) के प्रति संपूर्ण समर्पण होता है। अर्थात् सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि भक्त की आत्मा का परमात्मन् की डोर से बंध जाना।
महंत श्री पारस भाई जी की नजरों में भक्ति का तात्पर्य है " स्नेह, लगाव, श्रद्धांजलि, विश्वास, प्रेम, पूजा, पवित्रता, समर्पण "। इसका उपयोग मूल रूप से हिंदू धर्म में एक भक्त द्वारा व्यक्तिगत भगवान या प्रतिनिधि भगवान के प्रति भक्ति और प्रेम का उल्लेख करते हुए किया गया था।
भक्ति का स्वरुप कैसा होना चाहिए:
संक्षेप में कहा जा सकता है कि भक्ति में तीन मुख्य गुण अर्थात् भक्त का भाव निष्कपट, निःस्वार्थ, निष्ठा समर्पण होना चाहिए। परमेश्वर अथवा ईश्वर के प्रति निष्ठापूर्वक समर्पित होने वाला साधक ही सत्यप्रिय (निष्ठावान) भक्त है।
संध्यावन्दन, योग, ध्यान, तंत्र, ज्ञान, कर्म के अतिरिक्त भक्ति भी मुक्ति का एक मार्ग है। भक्ति भी कई प्रकार ही होती है। इसमें श्रवण, भजन-कीर्तन, नाम जप-स्मरण, मंत्र जप, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य, पूजा-आरती, प्रार्थना, सत्संग आदि शामिल हैं। इसे नवधा भक्ति कहते हैं।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि भक्ति में तीन मुख्य गुण अर्थात् भक्त का भाव निष्कपट, निःस्वार्थ, निष्ठा समर्पण होना चाहिए। महंत श्री पारस भाई जी ने बताया कि परमेश्वर अथवा ईश्वर के प्रति निष्ठापूर्वक समर्पित होने वाला साधक ही सत्यप्रिय (निष्ठावान) भक्त है।
ध्यान उपासना करने हेतु दिशा:
ध्यान आराधना करते समय भक्त का मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर-पूर्व को उत्तमोत्तम दिशा माना गया है क्योंकि उत्तर-पूर्व को ईशान कोण कहा जाता है ।
वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा गृह में कभी भी पूर्वजों की तस्वीर न तो लगानी चाहिए व ना हीं रखनी चाहिए। भगवान् की किसी प्रतिमा या मूर्ति की पूजा करते समय भक्त उपासक का मुख पूर्व दिशा में होना चाहिए। यदि पूर्व दिशा में मुंह नहीं कर सकते तो पश्चिम दिशा की ओर मुख करके पूजा करना भी उचित है।
वास्तु शास्त्र में बताया गया है कि पूर्व दिशा की ओर मुंह करके खाना खाने से सभी तरह के रोग मिटते हैं पूर्व दिशा को देवताओं की दिशा माना जाता है तथा पूर्व दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से देवताओं की कृपा और आरोग्य की प्राप्ति होती है एवं आयु में वृद्धि होती है।
दक्षिण-पूर्व दिशा में भगवान् के विराट स्वरूप की चित्र लगाएं। यह ऊर्जा का सूचक है। समस्त ब्रह्माण्ड को स्वयं में समाए असीम ऊर्जा के प्रतीक भगवान् श्रीकृष्ण समस्त संसार के भोक्ता हैं.।
भागवत भक्ति क्यों की जाती है:
संक्षेप में हम यह मानते व जानते एवं जानते हैं कि आराधक निज मनोरथ-पूर्ति हेतु ईश्वर (भगवत व भगवती) की भक्ति करते हैं। मनुष्य इसलिए ईश्वर के समीप जाता है कि वह ईश्वर-भक्ति करके अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सके। परमेश्वर एक है। गुरु एवं गोविन्द भी एक है।
क्या है भगवान् की भक्ति:
जब भक्त सेवा अथवा आराधना के माध्यम से परमात्मन् से साक्षात संबंध स्थापित कर लेता है तो इसे ही गीता में भक्तियोग कहा गया है। नारद के अनुसार भगवान् के प्रति मर्मवेधी (उत्कट) प्रेम ही भक्ति है। ऋषि शांडिल्य के अनुसार परमात्मा की सर्वोच्च अभिलाषा ही भक्ति है। नारद के अनुसार भगवान् के प्रति परितस अथवा उत्कट प्रेम होने पर भक्त भगवान् के रङ्ग में ही रंग जाते हैं।
महंत श्री पारस भाई जी के कहा कि जिसके विचारों में पवित्रता हो, साथ ही जो अहंकार से दूर हो और जो सबके प्रति समान भाव रखता हो, ऐसे व्यक्ति की भक्ति सच्ची है और वही सच्चा भक्त है।
भक्त कितने प्रकार के होते हैं:
भक्ति विविध प्रकार की होती है। भक्ति में श्रवण, भजन-कीर्तन, नाम जप-स्मरण, मंत्र जप, पाद-सेवन, पूजन-अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य, पूजा-आरती, प्रार्थना, सत्संग इत्यादि शामिल हैं।
चार तरह के भक्त:
श्रीमद भगवद् गीता के सप्तम अध्याय में भगवान् श्रीकृष्ण पार्थ (अर्जुन) विभिन्न प्रकार के भक्तों के विषय में वर्णन करते हुए कहते हैं कि
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ॥०७-१६॥
सार: हे अर्जुन! आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी एवं ज्ञानी ऐसे चार प्रकार के भक्त मेरा भजन किया करते हैं। इन चारों भक्तों में से सबसे निम्न श्रेणी का भक्त अर्थार्थी है। उससे श्रेष्ठ आर्त, आर्त से श्रेष्ठ जिज्ञासु, तथा जिज्ञासु से भी श्रेष्ठ ज्ञानी है।
अर्थार्थी: अर्थार्थी भक्त वह है जो भोग, ऐश्वर्य तथा सुख प्राप्त करने के लिए भगवान् का भजन करता है। उसके लिए भोगपदार्थ व धन मुख्य होता है एवं ईश्वर का भजन गौण।
आर्त: आर्त भक्त वह है जो शारीरिक कष्ट आ जाने पर या धन-वैभव नष्ट होने पर अपना दु:ख दूर करने के लिए भगवान् को पुकारता है।
जिज्ञासु: जिज्ञासु भक्त अपने शरीर के पोषण के लिए नहीं वरन् संसार को अनित्य जानकर भगवान् का तत्व जानने एवं उन्हें प्राप्त करने के लिए भजन करता है।
ज्ञानी: आर्त, अर्थार्थी एवं जिज्ञासु तो सकाम भक्त हैं किंतु ज्ञानी भक्त सदैव निष्काम होता है। ज्ञानी भक्त परमात्मन् के अतिरिक्त कोई अभिलाषा नहीं रखता है। इसलिए परमात्मन् ने ज्ञानी को अपनी आत्मा कहा है। ज्ञानी भक्त के योगक्षेम का वहन भगवन् स्वयं करते हैं।
चारों भक्तों में से कौन-सा भक्त है संसार में सर्वश्रेष्ठ:
तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः॥१७॥
अर्थात् ��रमात्मन् श्रीकृष्णः श्रीमद भगवद् गीता में कुंतीपुत्र अर्जुन (कौन्तेय) से कहते हैं कि
सार: इनमें से जो परमज्ञानी है तथा परमात्मन् की शुद्ध भक्ति में लीन रहता है वह सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि मैं उसे अत्यंत प्रिय हूं एवं वह मुझे अतिसय प्रिय है। इन चार वर्गों में से जो भक्त ज्ञानी है वह साथ ही भक्ति में लगा रहता है, वह सर्वश्रेष्ठ है।
कलयुग में भगवान् को कैसे प्राप्त करें:
श्रीमद्भागवत के अनुसार कलयुग दोषों का भंडार है। किन्तु इसमें एक महान सद्गुण यह है कि सतयुग में भगवान् के ध्यान, तप एवं त्रेता युग में यज्ञ-अनुष्ठान, द्वापर युग में आराधक को भक्त तप व पूजा-अर्चन से जो फल प्राप्त होता था, कलयुग में वह पुण्य परमात्मन् श्रीहरिः के नाम-सङ्कीर्तन मात्र से ही सुलभ हो जाता है।
महंत श्री पारस भाई जी कहते हैं इस कलयुग में शुद्ध भक्ति, प्रेम का वह उच्चतम रूप है जिसका जवाब भगवान बिना शर्त, प्रेम और ध्यान के साथ देते हैं।
कलयुग में चिरजीविन् देव:
वैसे तो महर्षि मार्कण्डेय, दैत्यराज बलि, परशुराम, आञ्जनेय (महावीर्य हनुमन्त् अवा हनुमत्), लङ्केश विभीषण, महर्षि वेदव्यास, कृप व अश्वत्थामन् किन्तु महाबली हनुमन् को समस्त युगों में जगदीश्वर सदाशिवः, चिरजीविन् नारायणः, पितामह ब्रह्मदेव व धर्मराज यमदेव एवं अन्य समग्र देवगणों के आशीर्वचन के अनुसार अतुलित बलधामन् हनुमन्त् अथवा हनुमत् को चिरजीविन् बने रहने का वरदान प्राप्त है। पुरुषोत्तम श्रीरामः ने भी निज साकेत लोक में जाने के पूर्व आञ्जनेय को चिरजीविन् रहने का वरदान दिया था।
गोसाईं तुलसीदास जी रामायण में लिखते हैं कलियुग में भी हनुमान् जी न केवल जीवंत रहेंगे अपितु चिरजीविन् बने रहेंगे एवं उनकी कृपा से ही उन्हें (महात्मा तुलसीदास) पुरुषोत्तम श्रीराम व लक्ष्मण जी के साक्षात दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्हें सीताराम जी से आशीर्वाद स्वरूप अजर अमर होने का वर प्राप्त है।
हनुमान् जी का वास स्थान:
कहते हैं कि कलियुग में आञ्जनेय (हनुमन्त्) गन्धमादन (गंधमादन) गिरि पर निवास करते हैं, ऐसा श्रीमद् भागवत में वर्णन आता है। उल्लेखनीय है कि अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पाण्डव (महाराज पाण्डुपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल सहदेव व द्रौपदी सहित गंधमादन पर्वत के निकट पहुंचे थे।
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